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“बेवज� ही ;
कभी जब तु� या� आत� हो तो
आँ� पोंछ कर कहकह� लगाती हू� ....
तुम्हारी पसंद का रं� पहनती हू� ।।”
― Wo Lamha
कभी जब तु� या� आत� हो तो
आँ� पोंछ कर कहकह� लगाती हू� ....
तुम्हारी पसंद का रं� पहनती हू� ।।”
― Wo Lamha
“का� कभी ऐस� हो जाये
भीगा मन हो
शϤ मै� टांग दू� अलगनी पर
तु� सुबह की धू� बन कर
मेरे आँगन � जा� ।।”
― Wo Lamha
भीगा मन हो
शϤ मै� टांग दू� अलगनी पर
तु� सुबह की धू� बन कर
मेरे आँगन � जा� ।।”
― Wo Lamha
“बेवज� ही ;
हथेली मे� चाँद रख लेती हू� ....
रा� से झगड़ा कर लेती हू�,
ख़्वाबो� को वापि� भे� देती हू� ।।”
― Wo Lamha
हथेली मे� चाँद रख लेती हू� ....
रा� से झगड़ा कर लेती हू�,
ख़्वाबो� को वापि� भे� देती हू� ।।”
― Wo Lamha
“उसकी तर� पी� कर के
बै� गयी मै�, अपनी चा� लेकर ।।
फ़ो� मे� मैसेंज� पर
दि� भे� दिया उसने ....
शϤ
ज़र� सी मुस्का� � गयी
मेरी नम आँखो� मे� ।।”
― Wo Lamha
बै� गयी मै�, अपनी चा� लेकर ।।
फ़ो� मे� मैसेंज� पर
दि� भे� दिया उसने ....
शϤ
ज़र� सी मुस्का� � गयी
मेरी नम आँखो� मे� ।।”
― Wo Lamha
“बेवज� ही ;
किसी दि� चा� के दो कप बनाती हू� ....
Balcony मे� खड़� हो कर
दू� तक तु� को तलाशती हू� ।।”
― Wo Lamha
किसी दि� चा� के दो कप बनाती हू� ....
Balcony मे� खड़� हो कर
दू� तक तु� को तलाशती हू� ।।”
― Wo Lamha