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“सा� चाँद की रानी ने आखिर अपनी निगाहो� के जादू से सन्नाट� के प्रे� को जी� लिया� स्पर्श� के सुकुमा� रेशमी तारो� ने नग� की आग को शबनम से सींच दिया� ऊबड़-खाबड� खंडह� को अंगो� के गुला� की पाँखुरियों से ढे� दिया और पीड़� के अंधियारे को सीपिया पलको� से झरने वाली दूधिया चाँदनी से धो दिया� एक संगी� की लय थी जिसमें स्वर्गभ्रष्ट देवत� खो गय�, संगी� की लय थी या उद्दाम यौवन का भर� हु� ज्वा� था जो चन्द� को एक मासू� फू� की तर� बह� ले गय�...जहाँ पूजा दी� बु� गय� था, वहाँ तरुणाई की साँस की इन्द्रधनुषी समाँ झिलमिल� उठी थी, जहाँ फू� मुरझाक� धू� मे� मि� गय� थे वहाँ पुखराजी स्पर्श� के सुकुमा� हरसिंगार झर पड़े....आकाश के चाँद के लि� जिंदगी के आँगन मे� मचलत� हु� कन्हैय�, थाली के प्रतिबिम्ब मे� ही भू� गय�...”

Dharamvir Bharati, गुनाहो� का देवत�
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गुनाहों का देवता गुनाहो� का देवत� by Dharamvir Bharati
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