“दोस्तो�, यह सच है कि समझाने से लो� नही� समझत�, क्योंक� अग� सम� पाते तो बांसुरी बजान� वाले श्री कृष्� कभी महाभार� नही� होने देते� लेकि� फि� भी समझन� और समझाने का प्रयास निरंतर जारी रखना चाहिए।
हम सब अपने मा�-सम्मान, धन-दौलत का ध्या� रखते हैं। रखना भी चाहिये� लेकि� क्या हम उस रामतत्� का ध्या� रखते है� जो जन्म से ही हमार� अंदर छुपा है? इस रामतत्� को विकसित � कर पाना अज्ञानता है, परंत� उस� अपने हाथो� नष्ट करना तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है�
को� बा� नही की आप इस जन्म मे� पुण्� कर्मों के बल को आग� के लिये संचि� नही कर पाते है�, लेकि� ये क्या की संचि� जन्मों से संचि� पुण्� कर्मों को भी इस जन्म मे� खत्म कर दे�.. ये तो को� समझदारी की बा� नही हु� �
इसीलिये हर कद� संभल कर चलना, सावधानी से चलना ही प्रार्थन� है�
प्रभ� से प्रार्थन� है कि आप शु� कर्म करते हु�, अपने रामतत्� का पोषण करते हु� और अपने आराध्य पर विश्वा� रखते हु� अपनी दिव्� सम्भावनाओं को जल्दी साका� कर लें।
श्री रामा� नमः। � हं हनुमते नमः।�”
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