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प्रिया वर्म�'s Reviews > गुनाहो� का देवत�

गुनाहों का देवता by Dharamvir Bharati
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69928605
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it was amazing

वो जो हम करना चाहे� और वो जो हम कर बैठे हो� , इन दोनो� के बी� का अंतर हमसे गुना� करवाता है , ऐस� गुना� जो हमार� अंदर के देवत्व को और मज़बूत बन� देते है� और जन्मते है� "गुनाहो� का देवत�"

एक ऐसी कहानी जो शुरुआत मे� बहुत साधारण हर दूसर� घर की कहानी से शुरू होकर अं� तक आत� आत� असाधार� हो उठती है , ये भीतर छुपे बैठे भय को झंकझोरती है कि जो बेमन हो वो कभी अच्छ� नही� हो सकता , उम्र को सालो� से महीनो� मे� समेट देता है , अंदर घुटन का धुंआ भर देता है और बाहर केवल रा� .... वो रा� जो सुधा थी , और सज गई बिनती की मांग मे� , चंदर को गुनाहो� का देवत� बन� कर �
बेमे� विवा� समाज के लि� घातक हो� � हो� , इंसा� के लि� आत्मघातक है� , सम� रहते '� ' और 'हा� ' कह देने मे� संको� � करने का भे� भी सीखन� चाहि� �
प्रे� मे� दे� और आत्म� दोनो� की आवश्यकता होती है , अन्यथा व्यक्त� दे� होते हु� भी नर्क की रा� पकड़ लेता है �
उपन्या� पढ़त� वक्त मै� बीसियो बा� रो� हू� , हो सकता है आप खु� को संभा� पाएं , मग� इस किता� को केवल एक कहानी नही� कह पाएंगे , ये मानव सम्बन्धो� का मनोविज्ञान है � यक़ीनन हर किसी को पढ़नी चाहि� " गुनाहो� का देवत� "
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November 8, 2017 – Started Reading
November 11, 2017 – Shelved
November 13, 2017 – Finished Reading

Comments Showing 1-2 of 2 (2 new)

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message 1: by Ravikant (new)

Ravikant Raut सच मे�


Pratibha Suku बहुत अच्छ� लिखा है


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