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Sanjay Singh

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Ramdhari Singh 'Dinkar'
“दो न्या� अग� तो आध� दो,

पर, इसमे� भी यद� बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्रा�,

रक्ख� अपनी धरती तमाम�
हम वही� खुशी से खायेंग�,

परिज� पर अस� � उठायेंगे!


दुर्योधन वह भी दे ना सक�,

आशिष समाज की ले � सक�,
उलटे, हर� को बाँधने चल�,

जो था असाध्य, साधन� चला।
जन ना� मनुज पर छाता है,

पहले विवे� मर जाता है�


हर� ने भीषण हुंकार किया,

अपना स्वरूप-विस्ता� किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,

भगवान् कुपि� होकर बोले-
'जंजी� बढ़ा कर सा� मुझे,

हा�, हा� दुर्योधन! बाँध मुझे�


यह दे�, गग� मुझमें लय है,

यह दे�, पव� मुझमें लय है,
मुझमें विली� झंका� सक�,

मुझमें लय है संसा� सकल।
अमरत्व फूलत� है मुझमें,

संहा� झूलत� है मुझमें�”
Ramdhari Singh Dinkar, रश्मिरथी

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