

“दो न्या� अग� तो आध� दो,
पर, इसमे� भी यद� बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्रा�,
रक्ख� अपनी धरती तमाम�
हम वही� खुशी से खायेंग�,
परिज� पर अस� � उठायेंगे!
दुर्योधन वह भी दे ना सक�,
आशिष समाज की ले � सक�,
उलटे, हर� को बाँधने चल�,
जो था असाध्य, साधन� चला।
जन ना� मनुज पर छाता है,
पहले विवे� मर जाता है�
हर� ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्ता� किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपि� होकर बोले-
'जंजी� बढ़ा कर सा� मुझे,
हा�, हा� दुर्योधन! बाँध मुझे�
यह दे�, गग� मुझमें लय है,
यह दे�, पव� मुझमें लय है,
मुझमें विली� झंका� सक�,
मुझमें लय है संसा� सकल।
अमरत्व फूलत� है मुझमें,
संहा� झूलत� है मुझमें�”
― रश्मिरथी
पर, इसमे� भी यद� बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्रा�,
रक्ख� अपनी धरती तमाम�
हम वही� खुशी से खायेंग�,
परिज� पर अस� � उठायेंगे!
दुर्योधन वह भी दे ना सक�,
आशिष समाज की ले � सक�,
उलटे, हर� को बाँधने चल�,
जो था असाध्य, साधन� चला।
जन ना� मनुज पर छाता है,
पहले विवे� मर जाता है�
हर� ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्ता� किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपि� होकर बोले-
'जंजी� बढ़ा कर सा� मुझे,
हा�, हा� दुर्योधन! बाँध मुझे�
यह दे�, गग� मुझमें लय है,
यह दे�, पव� मुझमें लय है,
मुझमें विली� झंका� सक�,
मुझमें लय है संसा� सकल।
अमरत्व फूलत� है मुझमें,
संहा� झूलत� है मुझमें�”
― रश्मिरथी
Sanjay’s 2024 Year in Books
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