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“गंगा की लहरो� मे� बहता हु� रा� का साँप टू�-फूटक� बिखर चुका था और नदी फि� उसी तर� बहने लगी थी जैसे कभी कु� हु� ही � हो।�”
― गुनाहो� का देवत�
― गुनाहो� का देवत�
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