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Anurag's Reviews > सूरज का सातवाँ घोड़�

सूरज का सातवाँ घोड़ा by Dharamvir Bharati
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'सूरज का सातवाँ घोड़�' उपन्या� की भूमिका श्री अज्ञेय जी ने लिखी है और इस भूमिका मे� अज्ञेय जी ने कह� है कि वो भारती जी को जीनियस नही� कहेंगे क्योंक� किसी को जीनियस कह देना उसकी विशेषज्ञता को एक भारी भरकम शब्द देकर उड़ा देना है � जीनियस क्या है हम जानत� ही नही� है, बस लक्षणो� को ही जानत� है� जैसे - अथ� श्रम-सामर्थ्य और अध्यवसाय, बहुमुखी क्रियाशीलत�, प्राचुर्�, चिरजाग्र� चि�-निर्माणशी� कल्पना, सत� जिज्ञासा और पर्यवेक्षण, दे�-का� या यु�-सत्य के प्रत� सतर्कत�, परम्पराज्ञान, मौलिकत�, आत्मविश्वा� और - हा�, - एक गहरी विनय� और अज्ञेय जी का मूल्यांक� है कि भारती जी मे� ये सब लक्ष� विद्यमान हैं। प्रख्यात समकाली� लेखकों द्वारा अपने समकाली� लेखकों के लि� भूमिका या प्रस्तावना लिखन� उस सम� कम ही होता था, तथाप� अज्ञेय जी ने भूमिका लिखन� सहर्� स्वीका� किया और भारती जी को हिंदी साहित्� का उगता हु� सितारा बताय� �

'सूरज का सातवाँ घोड़�' धर्मवी� भारती जी का एक प्रयोगात्म� और मौलि� उपन्या� है� प्रयोगात्म� इसलि� क्योंक� इसके बहुत से गु� परम्पराग� हिंदी उपन्यासो� से अल� थे मसलन कहानी मे� कम पात्रो� का होना, उपन्या� का बहुत विशा� � होना, किसी पात्� के विका� के लि� बहुत अधिक सम� और घटनाएं नही� देना, शुरुआत मे� पृथक दिखन� वाली कहानियों का आप� मे� सम्बन्� होना, स्मृति पर आधारित पात्रो� मे� पर्याप्त विविधत� होना इत्याद� � मौलि� इसलि� क्योंक� जि� विधा मे� यह उपन्या� लिखा गय� है वह समकाली� हिंदी साहित्� मे� कम देखन� को मिलत� है और, हितोपदेश और पंचतंत्र की कथ� शैली की या� अधिक दिलाता है जैसे कि छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से उपन्या� को आग� बढ़ाते रहना जबकि कहानी के पात्रो� मे� और उनके द्वारा सुना� गयी कहानियों मे� को� प्रत्यक्� कड़ी नही� मिलती है जैसा कि हमने कादम्बरी मे� देखा है �

इस उपन्या� मे� निष्कर्षवादी कहानियाँ दी गई है� � निष्कर्षवादी कहानियाँ क्या होती है�, यह उपन्या� के प्रमुख पात्� माणि� मुल्ला ने समझाया है कि किसी कहानी को लिखन� के पहले उसका निष्कर्ष मन मे� सो� लो � फि� पात्रो� पर इतना अनुशाष� होना चाहि� कि कहानी को उस सोचे हु� अं� की तर� ले जाया जा सके। उपन्या� मे� प्रस्तुत कहानियों मे� जब अं� मे� निष्कर्ष पर चर्च� हु� है तो कई बा� निष्कर्ष अत्यंत बनावटी लग� और ऐस� भी लग� कि कहानियों की बौद्धि� गहरा� और साहित्यि� सुंदरत� उन निष्कर्षों से हल्की हो चली है लेकि� शायद माणि� मुल्ला के पात्� को विकसित करने के लि� ऐस� आवश्यक रह� हो �

माणि� मुल्ला के माध्यम से भारती जी ने प्रे� मे� यथार्थवा� पर बल दिया है � माणि� मुल्ला कहते है� कि प्रे� आर्थिक परिस्थितियों से अनुशाषित होता है और आंशि� रू� से यह कह� जा सकता है कि प्रे� आर्थिक निर्भरता का ही दूसर� ना� है� हालाँक� बा� मे� माणि� मुल्ला ने इस पर सफाई भी दी -
"इस रूमानी प्रे� का महत्� है, पर मुसीबत यह है कि वह कच्च� मन का प्या� होता है, उसमे� सपने, इन्द्रधनुष और फू� तो काफी मिक़दा� मे� होते है� पर वह साहस और परिपक्वत� नही� होती जो इन सपनो� और फूलो� को स्वस्थ सामाजि� सम्बन्धो� मे� बद� सक� � नतीजा यह होता है कि थोड़� दि� बा� यह सब मन मे� उसी तर� गायब हो जाता है जैसे बादल की छाँह � आखिर हम हव� मे� तो नही� रहते है� और जो भी भावन� हमार� सामाजि� जीवन की खा� नही� बन पाती, ज़िन्दगी उस� झाड़-झंखाड़ की तर� उख� फेंकती है�"

उपन्या� मे� माणि� मुल्ला के प्रे� सम्बन्� या प्रे� की सीमा तक ही पहुँचत� सम्बन्� ती� लड़कियों से दिखा� गए है� � तीनो ही लड़कियों का स्वाभा� और जीवनयापन एक दूसर� से बिलकुल भिन्� था � जमुन� भावनात्म� थी, लिली पढ़ी-लिखी थी लेकि� उसमे� अपने आप से कद� उठान� की, निर्णय लेने की क्षमता � थी और सत्ती एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर महिल� था जो कि बड़े फैसल� स्वय� ले सकने मे� समर्� थी � सत्ती के बारे मे� माणि� मुल्ला का कहना था - "वह कु� ऐसी भावनायें जगाती थी जो ऐसी ही को� मित्� संगिनी जग� सकती थी जो स्वाधी� हो, जो साहसी हो, जो मध्यवर्ग की मर्यादाओ� के शीशो� के पीछे सजी हु� गुड़िय� की तर� बेजा� और खोखली � हो � जो सृजन और श्रम मे�, सामाजि� जीवन मे� उचित भा� लेती हो, अपना उचित दे� देती हो �" इन तीनो� पात्रो� के माध्यम से भारती जी ने निम्� मध्यमवर्� की सच्चाई को दिखाया है कि किसी का स्वाभा� कैसा भी हो, अग� वह समाज से विद्रो� कर सकने मे� समर्� नही� है तो उस� समाज की तर्कशून्� मांगों को मानन� ही होगा�

गुनाहो� का देवत� के बा� आय� भारती जी के इस उपन्या� को सराह� गय� था� कु� कु� जगहो� पर गुनाहो� का देवत� की रूमानी शैली देखी जा सकती है जहाँ पर भारती जी कथान� को धीरे-धीरे प्रकृत� से शुरू करके मनुष्यों पर खींच लाते है� और अं� मे� उस� फि� ले जाकर प्रकृत� पर छोड़ देते है� � इस उपन्या� पर इसी ना� से एक हिंदी फिल्� भी बनी थी जिसे श्या� बेनेगल ने निर्देशि� किया था और उसको भी पर्याप्त सराह� गय� था� फिल्� को 1993 का सर्वश्रेष्� हिंदी फिल्� का राष्ट्री� पुरस्कार भी दिया गय� था �

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December 26, 2015 – Shelved
December 26, 2015 – Finished Reading

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Hirendra Reang Very nice story


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