Munshi Premchand > Quotes > Quote > Alwar liked it

“वैवाहि� जीवन के प्रभात मे� लालस� अपनी गुलाबी मादकता के सा� उद� होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्� की सुनहरी किरणों से रंजि� कर देती है� फि� मध्याह� का प्रख� ता� आत� है, क्षण-क्षण पर बगूल� उठते है�, और पृथ्वी काँपने लगती है� लालस� का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रू� मे� सामन� � खड़ी है� उसके बा� विश्रामम� सन्ध्य� आती है, शीतल और शान्�, जब हम थक� हु� पथिकों की भाँत� दि�-भर की यात्रा का वृत्तान्� कहते और सुनत� है� तटस्� भा� से, मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे है� जहाँ नीचे का जनरूरव हम तक नही� पहुँचता। धनिय�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
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