गोदा� [Godaan] Quotes
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गोदा� [Godaan] Quotes
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“लिखत� तो वह लो� है�, जिनक� अंदर कु� दर्द है, अनुराग है, लग� है, विचा� है� जिन्होंन� धन और भो�-विला� को जीवन का लक्ष्य बन� लिया, वह क्या लिखेंग�? �”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“बूढ़ों के लि� अती� के सुखो� और वर्तमा� के दुःखों और भविष्य के सर्वना� से ज्यादा मनोरंज� और को� प्रसंग नही� होता�”
― गोदा�
― गोदा�
“स्त्री पृथ्वी की भाँत� धैर्यवान� है, शांत�-संपन्न है, सहिष्ण� है� पुरु� मे� नारी के गु� � जाते है�, तो वह महात्म� बन जाता है� नारी मे� पुरु� के गु� � जाते है� तो वह कुलट� हो जाती है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“हम जिनक� लि� त्या� करते है� उनसे किसी बदले की आश� � रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहत� है�, चाहे वह शासन उन्ही� के हि� के लि� हो, यद्यपि उस हि� को हम इतना अपना लेते है� कि वह उनका � होकर हमार� हो जाता है� त्या� की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावन� भी उतनी ही प्रब� होती है और जब सहसा हमें विद्रो� का सामन� करना पड़त� है, तो हम क्षुब्� हो उठते है�, और वह त्या� जैसे प्रतिहिंसा का रू� ले लेता है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“हमें को� दोनो� जू� खाने को दे, तो हम आठों पह� भगवा� का जा� ही करते रहें�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“जी� कर आप अपने धोखेबाजियो� की डींग मा� सकते है�, जी� मे� सब-कु� मा� है� हा� की लज्ज� तो पी जाने की ही वस्त� है� �”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“गुड़ घर के अंदर मटको� मे� बं� रख� हो, तो कितन� ही मूसलाधार पानी बरसे, को� हानि नही� होती; पर जि� वक़्त वह धू� मे� सूखन� के लि� बाहर फैलाया गय� हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींट� भी उसका सर्वना� कर देगा� सिलिया”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“अज्ञान की भाँत� ज्ञा� भी सर�, निष्कप� और सुनहले स्वप्न देखनेवाल� होता है� मानवता मे� उसका विश्वा� इतना दृढ़, इतना सजी� होता है कि वह इसके विरुद्� व्यवहा� को अमानुषी� समझन� लगता है� यह वह भू� जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहत� का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है� वह अपना एक आदर्�-संसा� बनाक� उसको आदर्� मानवता से आबाद करता है और उसी मे� मग्न रहता है� यथार्थता”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलत� है, वह उसका सम्मान नही� उसकी दौलत का सम्मान है”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“जो कु� अपने से नही� बन पड़�, उसी के दुःख का ना� तो मो� है �”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“आत्माभिमान को भी कर्त्तव्� के सामन� सि� झुकाना पड़ेगा।”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“केवल कौशल से धन नही� मिलता। इसके लि� भी त्या� और तपस्या करनी पड़ती है� शायद इतनी साधन� मे� ईश्व� भी मि� जाय। हमारी सारी आत्मिक और बौद्धि� और शारीरि� शक्तियों के सामंजस्य का ना� धन है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“शराब अग� लोगो को पागल कर देती है, तो क्या उस� क्या पानी से कम समझा जा� , जो प्या� बुझाता है , जिलाता है , और शांत करता है ?”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“वही नेकी अग� करनेवालो� के दि� मे� रह�, तो नेकी है, बाहर निकल आय� तो बदी है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“झुनिया को अब लल्ल� की स्मृति लल्ल� से भी कही� प्रि� थी�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“द्वेष का मायाजा� बड़ी-बड़ी मछलियो� को ही फँसाता है� छोटी मछलिया� या तो उसमे� फँसती ही नही� या तुरं� निकल जाती हैं। उनके लि� वह घातक जा� क्रीड़ा की वस्त� है, भय की नहीं।”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“भीतर की शांत� बाहर सौजन्य बन गई थी�”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“वैवाहि� जीवन के प्रभात मे� लालस� अपनी गुलाबी मादकता के सा� उद� होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्� की सुनहरी किरणों से रंजि� कर देती है� फि� मध्याह� का प्रख� ता� आत� है, क्षण-क्षण पर बगूल� उठते है�, और पृथ्वी काँपने लगती है� लालस� का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रू� मे� सामन� � खड़ी है� उसके बा� विश्रामम� सन्ध्य� आती है, शीतल और शान्�, जब हम थक� हु� पथिकों की भाँत� दि�-भर की यात्रा का वृत्तान्� कहते और सुनत� है� तटस्� भा� से, मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे है� जहाँ नीचे का जनरूरव हम तक नही� पहुँचता। धनिय�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“सु� के दि� आयें, तो लड़ लेना; दु� तो सा� रोने ही से कटता है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“और कोयल आम की डालियो� मे� छिपी हु� संगी� का गुप्तदान कर रही थी�”
― गोदा� [Godaan]
― गोदा� [Godaan]
“कवित� रच डाले थे”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“सूर्� सि� पर � गय� था� उसके तेज़ से अभिभूत होकर वृक्षो� ने अपना पसार समेट लिया था�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“को नाटक का रू� देकर उस� शिष्� मनोरंज� का साधन बन� दिया था� इस अवसर पर उनके या�-दोस्�, हाकि�-हुक्का� सभी निमंत्रि� होते थे� और दो-ती� दि� इलाक़े मे� बड़ी चह�-पह� रहती थी� रा� साहब का परिवार बहुत विशा� था� को� डे� सौ सरदा� एक सा� भोजन करते थे� कई चच� थे, दरजनों चचेर� भा�, कई सग� भा�, बीसियो� नाते के भाई। एक चच� साहब राधा के अनन्� उपास� थे और बराब� वृन्दाबन मे� रहते थे� भक्त�-रस के कितन� ही कवित� रच डाले थे और सम�-सम� पर उन्हें छपवाकर दोस्तो� की भेंट कर देते थे� एक दूसर� चच� थे, जो रा� के परमभक्� थे और फ़ारसी-भाषा मे� रामायण का अनुवाद कर रह� थे� रियासत से सबके वसीके बँधे हु� थे� किसी को को� का� करने की ज़रूरत � थी�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“एक अन�-पुष्� की भाँत� धू� मे� खिली हु�, दूसरी ग़मल� के फू� की भाँत� धू� मे� मुरझाकी और निर्जीव। मालती”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]
“सभी मनस्वी प्राणियो� मे� यह भावन� छिपी रहती है और प्रकाश पाकर चम� उठती है�”
― गोदा� [Godan]
― गोदा� [Godan]