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“मानसरोवर सा मन मेरा तु� हो धव� कमलिनी सी,
छूटी लट छूने को अधरा मानो भँवरी पागल सी,
मधुर निशा मे� दम� रही हो सूर्� प्रभ� के मोती सी,
नम� हो गय� है मन मेरा हो तु� दिव्� रम� जैसी�”
― Muktak Shatak
छूटी लट छूने को अधरा मानो भँवरी पागल सी,
मधुर निशा मे� दम� रही हो सूर्� प्रभ� के मोती सी,
नम� हो गय� है मन मेरा हो तु� दिव्� रम� जैसी�”
― Muktak Shatak
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