लिट् फेस्� से आह� कव�
कव� चिंगारी की खिड़की पर कविताओ� का मौसम उत� आय� था� पिछल� एक हफ्त� मे� उन्होंने बयाली� कविताए� विभिन्� पत्र-पत्रिकाओ� को भेजी थी� भेजन� को तो वो पचास कविताए� और भे� सकते थे लेकि� फू�,पत्ती, गमला आल�,प्या� और मूली जैसी मामूली कविताए� लिखक� उनका मन उकता चुका था�
अफ़सोस एक कव� का कवित� से उकता जाना हमार� यहाँ अभी विमर्श का हिस्सा नही� बन पाया है� इसलि� चिंगारी जी सामन� लॉ� मे� लग� गमलो� मे� ऊग आए कु� फूलो� को निहा� रह� थे� तभी उनकी नज� एक पोस्टर पर चली गई� एक बिजली के खम्भ� पर लग� पोस्टर शह� मे� होने वाले आगामी राष्ट्री� साहित्यि� समारोह की सूचन� दे रह� था�
चिंगारी जी की दे� मे� साहित्यि� करें� दौड़ गया। उन्होंने देखा उनके ही शह� मे� तमाम साहित्यि� दिग्गज � रह� हैं। कु� कव� तो ऐस� है�, जो उनके अनुसार कभी उनके शिष्� हु� करते थे�
लेकि� कु� का ना� तो उन्होंने हिंदी साहित्� के इतिहास मे� आज तक कभी नही� पढ़ा है� चिंगारी जी ने चश्म� थोड़� उप� किया� अचान� पोस्टर पर एक छायावादी कवियत्री के दर्श� हु�.. जिसन� इन दिनो� कवित� मे� कपड़� के सा� लगातार प्रयोग करके साहित्यि� जग� मे� हलचल मचाई हु� है�
चिंगारी जी एकटक उस पोस्टर को निहारत� रहे। उनका चेहर� रुआसां हो गया…ए� झटके मे� उठ�, दीवा� पर लग� अपने तमाम साहित्यि� पुरस्कारों और मानद अलंकरणों को देखा…ऐसा लग� मानो� वो सब रो रहें हों…व� गुलजारी देवी न्या� द्वारा मिला कवित� भूषण सम्मान हो या बनवारी ला� न्या� द्वारा मिला कव� कुलभूष� सम्मान सब लानतें भे� रह� हो…तुम कैसे कव� हो कि अपने ही शह� मे� बिसर� दिये गए…क्य� आयोज� नही� जानत� कि एक राष्ट्री� कव� उनके ही शह� मे� रहता है�
दुःखी चिंगारी जी ने अपने सम्मान पत्रों से नजरे� हट� ली� और अपने वार्डरोब की तरफ़ निहारन� लगे।
सामन� कुर्ता-पायजाम� और वो खादी की सिलवाई नई सदरी नय� झोला, सब मिलक� ची� उठ� हे कव� महोद� ये मौसम खिड़की पर बैठक� फूलो� को देखत� हु� छायावादी चिंत� करने का नही है..ये तो साहित्यि� आयोजनो� का सम� है� सारे साहित्यकार निमंत्रि� हैं। हर शह� का अपना एक लिट् फेस्� हो रह� है� प्रभ� आप कब तक चलेंगे ? कब यहाँ से निकलेंगे�
उन्होंने देखा आलमारी मे� टँगा वो सफेद गमछा जो उन्हें बिससेर प्रसाद साहित्यि� सम्मान के सा� मिला था, वो भी पूछन� लग�, हे कव� तुम्हरी कविताओ� की धा� मे� कौ� सी कमी है जो किसी साहित्यि� सम्मले� की धारा मे� फी� नही बै� रही है�
चिंगारी जी को चिंत� सतान� लगी, सांस ते� होने लगी� अगले कु� मिनटों मे� वो अपनी कल� से अपने माथे को खुरेचा और सोचन� लग� कि बा� तो सही है..राष्ट्री� स्तर के चा� पुरस्कार लेने के बा� भी उनकी कविताऍ� किसी साहित्� उत्स� का हिस्सा क्यो� नही� बन पा� है� ? क्या ये हिंदी के छात्रो� के लि� शो� का विषय नही है ?
पत� की हालत दे� श्रीमती चिंगारी जी से रह� � गया। उन्होंने किचन मे� आल� छिलत� हु� कह�, सिर्� हमसे मुंह चलाएंग�, हमसे कहेंगे कि तु� का जानती हो कि हम कितन� के बड़े कव� है�, अब जाइय� आयोजको� से बताइये कि हम कितन� बड़े कव� हैं। इतने बड़े कव� है� कि अपने ही शह� मे� बुला� नही� गए�
पत्नी को वीरगाथ� का� की कवित� प्रस्तुत करता दे� चिंगारी जी रह� � गय�..वो घर से बाहर निकल आए..
घर की सामन� वाली गली पर एक चा� वाला चा� बे� रह� था और कु� पढ� रह� था…द�-चा� लड़क� उस� रिकॉर्� कर रह� थे� कव� चिंगारी ने एक चा� और एक सिगरेट मांग� और उस चायवादी कव� को देखन� लग�, उनकी सम� मे� नही� आय� ये कव� अजीबोगरी� तरीके से मुंह बनाक� चा� पर कवित� क्यो� पढ� रह� है ?
एक कैमरामैन ने चिंगारी जी को पहचा� लिया और बोला, कव� महोद�, यही ट्रेंड मे� है आजकल� मुझे पत� है आप क्यो� नही� बुला� गए� इसमे� आपका दो� नही� है� दो� आपकी कविताओ� का है� आजकल कव� वही है, जि� पर री� बन�..या जिसकी कवित� पर री� बने। आजकल कव� को कवित� करने से पहले इंफ्लुएंसर बनना पड़त� है, तब जाकर उस� किसी साहित्यि� समारोह का हिस्सा बनने का मौका मिलत� है।�
आपसे तो मै� आज तक इंफ्लुएं� नही� हो पाया, साहित्यि� दुनिया क्या खा� होगी ? अर� कव� नही� इम्फ्लुएंस� बनिये।
एक ओप� माइक मे� पढ़ी जा� ऐसी कवित� शू� करवाइए मात्रा पांच हज़ा� में। ऑफ� कल तक का है� इतने जागरूक कैमरामैन को देखत� ही चिंगारी जी से रह� � गया। झट से कह�, “ठी� है, मेरी भी चा�-पांच री� बन� दो,लेकि� थोड़� फी� के सा�..!�