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Atul Kumar Rai's Blog

January 19, 2025

एक गुमनाम आईआईटीयन

वो सुबह की ठंडी हव� की तर� यू� ही टकरा जाते� कभी तुलसी घा� पर स्न्ना� करते तो कभी विश्वनाथ गली के भेडियाधसान मे� पा� खाते�

किसी सुबह हम देखत� कि वो संकटमोचन मे� बंदर� को चन� गु� खिला रहें है� तो शा� को भदैनी की एक म्यूजिकल शॉ� के अंदर बांसुरी बज� रहें हैं।

ललाट पर चंदन का एक छोटा सा टीका, बद� पर साधारण सा कुर्ता-पायजाम�, कंधे पर झोला, पैरो� मे� हवाई चप्प� और हाथो� मे� किताबें।

उनको देखत� ही लगता कि सत्यजी� रे की फिल्मो� का को� नायक है, जो कलकत्त� की गलियों से निकलकर बनार� की गलियों मे� उन अबूझ रहस्यो� की तलाश कर रह� है, जो शायद उस� कभी नही� मिलेंगी�

मुझे या� है..पहली बा� वो कब टकरा� थे�

शायद दो हजार ग्यारह का अप्रैल जा रह� था� घा� के पत्थ� आग उगलन� को बेता� बैठे थे� तब ऐस� लगता था कि ये छात्� जीवन भी बनार� के पत्थरो� जैसा हो चुका है�

तब मै� उस ता� को कम करने के लि� दशाश्वमे� घा� की गंगा आरती मे� तबला बजाय� करता था� रो� देखत� कि एक शख़्स मेरे पा� आक� धीरे से बै� जाता है और पूरी आरती के दौरा� किसी तपस्वी की भांत� आंखे� बं� किये � जाने किसक� ध्या� करता रहता है�

एक बा� इसी दौरा� उन्होंने मेरा ना� पूछा था� फि� उसके बा� शुरू हो गई थी हा� उठाक� महादेव कहने की वही प्राची� बनारसी परम्परा।

बा� के कई सालो� मे� वो मुझस� जब भी मिलत�, जहां भी मिलत�, अभिवाद� के ना� पर उध� से वो हा� उठ� देते, इध� से मैं। कही� धीरे से मुंह से निकल जाता, महादेव�

कभी-कभी ये अभिवाद� दि� मे� कई बा� हो जाता� जि� दि� ज्यादा हो जाता, उस दि� इध� से मै� भी हं� देता, उध� से वो भी हं� देते�

इससे ज़्यादा � मैने� उनसे बा� करने मे� कभी रुचि दिखा�, � ही कभी उन्होंने�

मेरा इस दर्श� पर गहरा विश्वा� था कि प्रे� की भाषा मौ� है� इससे ज्यादा बोलन� की ज़रूर� भी क्या है�

लेकि� उनके हाथो� मे� क़िताबो� की विविधत� देखक� उनको जानन� की तीव्� इच्छ� होती कि आख़िर ये आदमी करता क्या है ?

लेकि� तब अपने जीवन की किता� के पन्न� इस कद� वक्त को कै� कर चुके थे कि दूसर� किसी को जानन� का वक्त � मि� सका।

ये सिलसिल� करी� सा�-आठ सा� चला।

एक सुबह की बा� है� मैने� देखा वही व्यक्त� अस्सी घा� की एक चा� की दुका� पर हाथो� मे� कल� लेकर एक चे� को बा�-बा� उल�-पल� रह� है� इध� से उधर…कभी किसी को फो� लग� रह� है, कभी आसमा� की तर� दे� रह� है�

उनके शांत व्यक्तित्व मे� एक अजी� किस्� की बेचैनी सी दि� रही है� दाढ़ी बड़ी हो चली है� ऐस� लगता है कि उनकी तबिय� ठी� नही है� अचान� से वो कु� ज्यादा ही बूढ़े लगने लगें हैं।

मैंन� उनकी तर� हा� उठाक� अभिवाद� किया, वो मुस्कराए� और फि� चा� वाले के पा� चल� गया। दे� रह� वही� मेरे एक मित्� शास्त्री जी खड़� है�..जो एक संस्कृ� विद्यालय मे� कर्मकांड पढ़ते भी थे और छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ात� भी थे�

किसी जमान� मे� गर्मी की छुट्टियो� मे� हॉस्टल बन्द हो जाने के बा� एक महीने के लि� मै� उनका रू� पार्टन� रह� था� मुझे देखत� ही पूछा, “भैय�, आप इनको कैसे जानत� है� ?�

मैंन� कह�, “नही जानता…कौन हैं। �

वो हँसन� लग�.. “क� मजाक कर रहें है�?�

मैंन� कह�, “भाई कस� से, नही� जानत� कौ� है�, बस आत�-जाते महादेव हो जाता है।�

उन्होंने बताया…य� आईआईटीयन हैं। दे� के बड़�-बड़� साइं� प्रॉजेक्� को ली� किया है� रिटायर्ड हो गए है�..�

मैंन� पूछा, “त� काहे� यहाँ भट� रह� है�, दि� भर ..?�

उन्होंने बताय� बनार� मे� जितन� संस्कृ� विद्यालय और भोजनाल� चलते है�, सबमे� गुप्� दा� करते हैं। आपके हॉस्टल के पीछे जो विद्यालय चल रह� है �, उन बच्चों के लि� आज दा� कर रह� है�, अभी उसी के प्राचार्� का इंतज़ार कर रहें हैं।�

मैंन� आश्चर्� भर� लहजे मे� कह�, ये दा� करते है�, इनको तो खु� दा� की जरूर� है ?

उन्होंने कह�,”जी, इनकी ट्रे� है हरिद्वार की� चाहत� है�, दा� दे दे� तब जाएं।�

मैंन� गौ� से देखा, वो मेरी तर� देखक� मुस्कर� रह� थे� उनके हा� कांप रह� थे� वो सच मे� बूढ़े हो चल� थे�

आखिरका� धीरे-धीरे पत� चल ही गय� कि वो आदमी अपने जीवन की सारी कमाई बनार� के संस्कृ� विद्यालयों और भोजनालयो� मे� दा� कर चुका है�

इतना जानक� उनके बारे मे� एक अगाध श्रद्ध� उतपन्न हुई। मु� से सहसा निकल गय� था, साधु-साधु�

बा� के दिनो� मे� उनसे कई बा� बा� भी की लेकि� उन्होंने � ही अपने आईआईटीयन होने का ढो� पीटा, � ही बहुत धनवा� होने का� अग� मै� कु� पूछत� तो वो बा� बद� देते और मेरे ही बारे मे� पूछन� लगते�

लेकि� पुण्� के कार्� उस फू� के सुगं� की तर� होते है�, जिनक� फैलन� से को� रो� नही सकता�

दो हजार अठार� के दौरा� मैने� एक बा� प्रयास किया कि उनके बारे मे� लिखू�..लेकि� उन्होंने कह�, नही रा� साहब, इन सब चीजो� की को� इच्छ� नहीं।�

मै जब भी उनसे सवाल करता वो उठकर चल देते, “चलत� है� रा� साहब।�

मै� करेक्ट करता, रा� नही सर, राय�

वो हंसत� और फि� बनार� की भी� मे� विली� हो जाते�

आज जब कुंभ मेला मे� एक आईआईटीयन बाबा के पीछे पूरे दे� की मीडिया लगी है� धार्मि� रू� से निरक्ष� पत्रकारो� ने आईआईटी के ना� पर उनका उठना-बैठन�, खाना-पीना मुहा� कर रख� है�

तब मुझे पंद्रह सा� पहले मिले उस दानवी� गुमनाम आईआईटियन की या� � रही है, जो हर सा� संस्कृ� की शिक्षा के लि�, तीर्थयात्रियों और विद्यार्थियो� के भोजन के लि� गुप्� दा� देता और देखत� ही देखत� बनार� की गलियों मे� विली� हो जाता�

आज से कु� सा� पहले पैदा हु� यूट्यूबरों, जियो आन� के बा� बुद्धिजीवी बन� मूर्� पत्रकारो� और एक्स पर उपस्थि� कीपै� क्रांतिकारियों को पत� होना चाहि� कि जितन� साधु और महापुरुष भगवा चोला ओढ़कर कुम्� मे� धूनी रम� रह� हैं।

उससे ज्यादा साधु सड़को पर चुपचाप धर्म और मनुष्यता के लि� अपना सर्वस्� दानक� बनार� की किन्ही गलियों मे� विली� हो चुके हैं।

इनको � अपने जीवन मे� मठ और महामंडलेश्वर होने की अभीप्सा है और � ही अपने आप को लोकप्रिय बनान� की लालसा।

ये साधु कुम्� मे� दि� भी गए, तो � को� पत्रका� खो� पाएग� � ही यूट्यूबर�

आज धर्म की जय हो कि समूची धूरी जितन� कुंभ के साधुओं पर टिकी है, उससे कही� ज्यादा इन गुमनाम धुरंधरों पर टिकी है�

अतुल

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Published on January 19, 2025 07:20

January 11, 2025

पॉडकास्ट कथ�

2007-8 के दौरा� जब आइपॉ� और ब्रॉडकास्ट से मिलक� पॉडकास्ट जैसा नय�-नवेल� शब्द दुनिया मे� पैदा हो रह� था, तब किसी को अंदाजा नही� था कि पॉडकास्ट की लोकप्रियता उस सम� एकाए� बढ़ जाएगी, जब पूरी दुनिया अटेंशन स्पै� की कमी से जू� रही होगी�

ये भी अजीबोगरी� विरोधाभा� है कि जहाँ एक तर� डिजिटल दुनिया पन्द्र� सेकेंड मे� अपना डोपामाइन बढ़ान� के लि� दि�-रा� स्क्री� को घसी� रही है� ठी� उसी सम� दो-दो घण्ट� के पॉडकास्ट भी खू� चा� से देखे जा रह� हैं।

हाला� ऐसी है कि जिसे देखिये वही दो माइक और थोड़ी सी सिनैमैटि� लाइटिं� के सा� पॉडकास्ट करना शुरू कर चुका है�

ऐस� करने वालो� मे� आज हर फिल्� के बड़� सेलिब्रेटी भी शामि� है� तो नेता और अभिनेत� भी हैं। गांव-कस्बों की झोपड़ पट्टी मे� रहने वाले लो� है�, तो प्रीमियम घरों मे� रहने वाली प्रिविलेज्� जमात भी शामि� है�

इस भरपू� साम्यवादी माहौ� मे� आज फिल्मो� का प्रमोश� हो या गानो� का प्रचार� चुना� लड़ना हो या ब्रांड का प्रमोश� करना हो� पॉडकास्ट मे� जाना मंदि� और दरगा� जाने से कही� ज्यादा ज़रूरी हो चुका है�

मुझे या� आत� है 2018 का वो समय।

जब स्टायलिश कैसे दिखे�, आसानी से लड़की कैसे पटाएं। रैंड� लड़की से कैसे चै� करें और बॉडी बनाक� भौजाइयों को इम्प्रेस करें टाइप अद्भुत विषयों पर ज्ञा� झाड़न� वाले यूट्यूबर रणवी� इलाहाबादिय� ने अचान� ये ज्ञा� देना बं� करके फूलटाइ� पॉडकास्ट करना शुरू कर दिया था�

तब यूट्यूबरों की दुनिया मे� ये हड़कम्प मच गय� था कि यूट्यू� एड रेवेन्यू, ब्रांड प्रमोश�, एफलिएट मार्केटिंग से लाखो� छापन� वाले रणवी� ने अचान� अपना गेयर क्यो� शिफ़्� कर दिया ? आखिर कौ� देखेगा इतना लंबा इंटरव्यू ?

लेकि� असली क्रिएट� वही है, जो आन� वाले सम� की नब्ज़ पक� ले� तब डिजिटल कंटे� क्रिएश� की दुनिया करवट ले रही थी� रणवी�,समदी� और रा� शमानी जैसे कई क्रियेटर्स ने उस सम� वक्त की चा� को ठी� से पहचा� लिया था�

परिणाम ये हु� है कि आज पांच-सा� सा� मे� पूरी दुनिया पॉडकास्टमय हो चुकी है� रिक्शा चलान� वाले से लेकर हवाई जहाज चलान� वालो� तक के पॉडकास्ट हैं। पोर्� बनान� वालो� और मिठा� बनान� वालो� तक के मिलियन व्यू� वाले पॉडकास्ट हैं।

पॉडकास्ट मे� जहां आपको खुले मे� सुसु करना पसंद है ? जैसे प्रश्न के साहित्यि� उत्त� दि� जा रह� है� तो रणबी� इलाहाबादिय� ने भी आपको मरने से डर लगता है जैसे प्रश्नों से ऊप� उठकर अक्ष� कुमा� से पू� दिया है कि आपने किसी को पेला है ?

लब्बोलुआ� ये है कि पॉडकास्ट एक घण्ट� मे� उग जाने वाला वो वट वृक्� बन चुका है, जिसकी हर डा� से क्रियेटर्स के ऊप� पैसा बर� रह� है�

आज एक पॉडकास्ट पर यूट्यू� � सिर्� साधारण वीडियो� से ज्यादा आरपीएम देता है� बल्क� एक पॉडकास्ट से इंस्टाग्रा� के सैकड़ों रिल्� बन जाते है�, दर्ज� भर वायर� वीडियो निकल आत� हैं।

वही पॉडकास्ट � सिर्� यूटयूब � देखा सुना जाता है बल्क� स्पॉटीफा�, एप्प� म्यूजि�, अमेज� म्यूजि�, सावन, गाना, जैसे तमाम ऑडिय� स्ट्रीमिंग एप्स पर भी सुना� देता है और वहां से भी पैसे कमात� है�

आज इमेज बिल्डिंग के लि� कु� पीआर कम्पनिया� सेलिब्रिटी� और ब्रांड्स से पैसे देकर पॉडकास्ट करवा रही� हैं।

तो वही� बीते दिनो� तमाम यूट्यूबरों ने ये आरोप लगाय� कि आदिवासी ते� बनान� वालो� ने रणवी� इलाहाबादिय� को एक पॉडकास्ट के सा� से सत्त� ला� रुपय� दि� हैं। बा� उगान� की दव� बनान� वाले ट्राया से रणवी� ने करोड़ों लिया है और लोगो� को ठग� है�

परसो ये कह� गय� कि दिल्ली विधानसभा चुना� की घोषण� होते ही केजरीवा� जी ने रा� शमानी को पचपन ला� देकर पॉडकास्ट किया है, जिसक� थंबनेल है…आ� एम नॉ� करप्�

लेकि� इन सब बौद्धि� बकलोलियो� को हट� दिया जा� तो कल का दि� पॉडकास्ट की दुनिया का क्रांतिकारी दि� था�

कल को� कंटेंट क्रिएट� नही� बल्क� दे� के युवा अरबपति निखि� कामत पीएम मोदी का पॉडकास्ट करने वाले थे�

अब शेयर बाज़ा� मे� रुचि रखने वाला शायद ही को� आदमी होगा जो जिरोधा और उसके फाउंडर निखि� कामत को नही जानत� होगा�

जैसे-जैसे भारत का शेयर बाज़ा� मारवाड़ी और गुजराती समुदाय से छिटक� भारत के गाँव-गिरा� तक चल� गय� है…वैस�-वैसे निखि� कामत एक सफ� उद्यमी बनते गए हैं।

फ़ोर्ब्� ने उनको सबसे युवा अरबपतियो� की लिस्� मे� शामि� किया है� एंटरप्रेन्योरशिप के बा� निखि� अपना एक पॉडकास्ट चैनल भी चलात� है�..जि� पर अब तक बि� गेट्�, कुमा� बिरल�, नंदन नीलकेणी और रणवी� कपूर जैसे दिग्गज � चुके हैं।

उसी कड़ी मे� कल पीएम मोदी उस पर आन� वाले थे� जनता को इंतज़ार था कि पॉडकास्ट की सबसे बड़ी usp यानी गेस्� और होस्� का आज भे� मि� जाएगा। यहां कु� मौलि� बाते� होंगी, जो इससे पहले � कभी बताई गई है�, � ही कही� सुना� गई हैं।

लेकि� परिणाम, वही दो घण्ट� मे� चल� ढ़ा� को� और ढा� के ती� पा� से ज्यादा कु� � रहा।

“मैं भगवा� नही� हूं…मुझ� आज को� तू कहने वाला नही� रहा। दोस्तो� को मै� दोस्� नही प्रधानमंत्री नज़� आत� हूँ। और इटली की पीएम मेलोनी वाली मी� तो सब देखत� हू� जी� जैसी ती�-चा� मौलि� बातो� को छोड़क� कु� नय� नही था।�

अक्ष� कुमा� द्वारा पूछि� आप आम चूसक� खाते है�, जैसे मौलि� प्रश्न भी नही� थे� निखि� बा�-बा� चा� पीते हु� अपनी लिमिट्� को या� करते रहे।

और एंटरप्रेन्यो�-एंटरप्रेन्योरशिप का जा� करते हु� उस गो� को अची� करने मे� कामयाब रह�, जिसक� लि� उन्होंने अरबपति बनने के बा� पॉडकास्ट करना शुरू किया है�

आखिरका� दो घण्ट� बा� ये सम� आय� कि पीएम मोदी को अपने तीसर� कार्यकाल मे� निखि� कामत की ज़रूर� नही� बल्क� अब एक ऐस� पॉडकास्ट की ज़रूर� है�,जहां वो अपनी सफलत� की गाथा के सा� ये बताए� कि स्मार्� सिटी और स्मार्� विले� जैसी उनकी दर्जनो� योजनाए� कैसे फ्लॉ� हु� ? बुले� ट्रे� मे� इतनी दे� क्यो� हु� ?

दस सा� बा� भी रेलव� मे� आमूलचू� परिवर्तन क्यो� नही� आय� ? शिक्षा संस्था� बदहा� क्यो� रह गए ? भारत की हर प्रतियोगी परीक्षा मे� बवाल क्यो� हो रह� है ? मिडि� क्लॉ� पर टैक्� की बारि� क्यो� हो रही है ?

देखत� ही देखत� भारत का हर शह� गै� चेम्बर मे� कैसे तब्दी� हो गय� है ?

और आखिरी सवाल कि अपने मेहन� औऱ समर्पण के बल पर एक साधारण कार्यकर्ता से पीएम तक का सफ� करने वाले पीएम मोदी को दिली� सी मंडल जैसे अवसरवादी बुद्धिजीवियो� की ज़रुर� क्यो� आन पड़ी है ?

अतुल

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Published on January 11, 2025 03:45

December 2, 2024

लिट् फेस्� से आह� कव�

कव� चिंगारी की खिड़की पर कविताओ� का मौसम उत� आय� था� पिछल� एक हफ्त� मे� उन्होंने बयाली� कविताए� विभिन्� पत्र-पत्रिकाओ� को भेजी थी� भेजन� को तो वो पचास कविताए� और भे� सकते थे लेकि� फू�,पत्ती, गमला आल�,प्या� और मूली जैसी मामूली कविताए� लिखक� उनका मन उकता चुका था�

अफ़सोस एक कव� का कवित� से उकता जाना हमार� यहाँ अभी विमर्श का हिस्सा नही� बन पाया है� इसलि� चिंगारी जी सामन� लॉ� मे� लग� गमलो� मे� ऊग आए कु� फूलो� को निहा� रह� थे� तभी उनकी नज� एक पोस्टर पर चली गई� एक बिजली के खम्भ� पर लग� पोस्टर शह� मे� होने वाले आगामी राष्ट्री� साहित्यि� समारोह की सूचन� दे रह� था�

चिंगारी जी की दे� मे� साहित्यि� करें� दौड़ गया। उन्होंने देखा उनके ही शह� मे� तमाम साहित्यि� दिग्गज � रह� हैं। कु� कव� तो ऐस� है�, जो उनके अनुसार कभी उनके शिष्� हु� करते थे�

लेकि� कु� का ना� तो उन्होंने हिंदी साहित्� के इतिहास मे� आज तक कभी नही� पढ़ा है� चिंगारी जी ने चश्म� थोड़� उप� किया� अचान� पोस्टर पर एक छायावादी कवियत्री के दर्श� हु�.. जिसन� इन दिनो� कवित� मे� कपड़� के सा� लगातार प्रयोग करके साहित्यि� जग� मे� हलचल मचाई हु� है�

चिंगारी जी एकटक उस पोस्टर को निहारत� रहे। उनका चेहर� रुआसां हो गया…ए� झटके मे� उठ�, दीवा� पर लग� अपने तमाम साहित्यि� पुरस्कारों और मानद अलंकरणों को देखा…ऐसा लग� मानो� वो सब रो रहें हों…व� गुलजारी देवी न्या� द्वारा मिला कवित� भूषण सम्मान हो या बनवारी ला� न्या� द्वारा मिला कव� कुलभूष� सम्मान सब लानतें भे� रह� हो…तुम कैसे कव� हो कि अपने ही शह� मे� बिसर� दिये गए…क्य� आयोज� नही� जानत� कि एक राष्ट्री� कव� उनके ही शह� मे� रहता है�

दुःखी चिंगारी जी ने अपने सम्मान पत्रों से नजरे� हट� ली� और अपने वार्डरोब की तरफ़ निहारन� लगे। 

सामन� कुर्ता-पायजाम� और वो खादी की सिलवाई नई सदरी नय� झोला, सब मिलक� ची� उठ� हे कव� महोद� ये मौसम खिड़की पर बैठक� फूलो� को देखत� हु� छायावादी चिंत� करने का नही है..ये तो साहित्यि� आयोजनो� का सम� है� सारे साहित्यकार निमंत्रि� हैं। हर शह� का अपना एक लिट् फेस्� हो रह� है� प्रभ� आप कब तक चलेंगे ? कब यहाँ से निकलेंगे�

उन्होंने देखा आलमारी मे� टँगा वो सफेद गमछा जो उन्हें बिससेर प्रसाद साहित्यि� सम्मान के सा� मिला था, वो भी पूछन� लग�, हे कव� तुम्हरी कविताओ� की धा� मे� कौ� सी कमी है जो किसी साहित्यि� सम्मले� की धारा मे� फी� नही बै� रही है�

चिंगारी जी को चिंत� सतान� लगी, सांस ते� होने लगी� अगले कु� मिनटों मे� वो अपनी कल� से अपने माथे को खुरेचा और सोचन� लग� कि बा� तो सही है..राष्ट्री� स्तर के चा� पुरस्कार लेने के बा� भी उनकी कविताऍ� किसी साहित्� उत्स� का हिस्सा क्यो� नही� बन पा� है� ? क्या ये हिंदी के छात्रो� के लि� शो� का विषय नही है ?

पत� की हालत दे� श्रीमती चिंगारी जी से रह� � गया। उन्होंने किचन मे� आल� छिलत� हु� कह�, सिर्� हमसे मुंह चलाएंग�, हमसे कहेंगे कि तु� का जानती हो कि हम कितन� के बड़े कव� है�, अब जाइय� आयोजको� से बताइये कि हम कितन� बड़े कव� हैं। इतने बड़े कव� है� कि अपने ही शह� मे� बुला� नही� गए�

पत्नी को वीरगाथ� का� की कवित� प्रस्तुत करता दे� चिंगारी जी रह� � गय�..वो घर से बाहर निकल आए..

घर की सामन� वाली गली पर एक चा� वाला चा� बे� रह� था और कु� पढ� रह� था…द�-चा� लड़क� उस� रिकॉर्� कर रह� थे� कव� चिंगारी ने एक चा� और एक सिगरेट मांग� और उस चायवादी कव� को देखन� लग�, उनकी सम� मे� नही� आय� ये कव� अजीबोगरी� तरीके से मुंह बनाक� चा� पर कवित� क्यो� पढ� रह� है ?

एक कैमरामैन ने चिंगारी जी को पहचा� लिया और बोला, कव� महोद�, यही ट्रेंड मे� है आजकल� मुझे पत� है आप क्यो� नही� बुला� गए� इसमे� आपका दो� नही� है� दो� आपकी कविताओ� का है� आजकल कव� वही है, जि� पर री� बन�..या जिसकी कवित� पर री� बने। आजकल कव� को कवित� करने से पहले इंफ्लुएंसर बनना पड़त� है, तब जाकर उस� किसी साहित्यि� समारोह का हिस्सा बनने का मौका मिलत� है।�

आपसे तो मै� आज तक इंफ्लुएं� नही� हो पाया, साहित्यि� दुनिया क्या खा� होगी ? अर� कव� नही� इम्फ्लुएंस� बनिये।

एक ओप� माइक मे� पढ़ी जा� ऐसी कवित� शू� करवाइए मात्रा पांच हज़ा� में। ऑफ� कल तक का है� इतने जागरूक कैमरामैन को देखत� ही चिंगारी जी से रह� � गया। झट से कह�, “ठी� है, मेरी भी चा�-पांच री� बन� दो,लेकि� थोड़� फी� के सा�..!�

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Published on December 02, 2024 01:05

November 23, 2024

नायिका का मन बदलन� वाली सड़�

दोपह� की तल्ख धू� है और हव� तेज। नायिका के चेहर� से गिरत� पसीना सौंदर्� प्रसाध� बनान� वाली सारी कम्पनियो� को मुंह चिढ़� रह� है�

फलस्वरूप नायिका की जा� लेबनान मे� परिवर्ति� होने ही वाली होती है कि नायक उसका हा� थामक� धीरे से कहता है, “ब�, थोड़ी दू� और.. उसके बा� सड़क एकदम ठी� हो जाएगी।�

हम दे� रहें हैं…जिध� तक नज� जाती है..समूची सड़क टूटक� उबड़खाबड� हो चुकी है� हर एक मीटर पर बड़े-बड़े गड्ढ� सिस्टम की लापरवाही का रोना रो रहें हैं।

ऐस� लगता है कि इस सड़क को बनान� लायक नही समझा गय� है� या फि� विधायक जी से कमीशन को लेकर आज ही ठेकेदा� का झगड़� हो गय� है�

या पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने अपने हिस्से के अभाव मे� बज� पा� नही किया है� या फि� कोलतार का उत्पाद� ठप्प है ,सारे मजदू� हड़ताल पर है� या फि� किसी यू टयूब के क्रांतिकारी पत्रका� से ये सड़क अछूती रह गई है�

जो भी हो..नायिका इस दुर्गम, दुरू�,दुष्कर सड़क पर दुपट्ट� से पसीने को पोछती, हा� मे� भक्तिकाली� साहित्� की किताबे� लेकर बड़े ही निरपेक्ष भा� से चलती जा रही है औऱ नायक को देखती जा रही है�

नायक इस दुर्गम रस्त� पर अपनी पंचर मोटरसाइकिल घसीटत� जा रह� है…घसीटन� के चक्क� मे� उसकी पूरी शर्ट भी� चुकी है� मोटरसाइकिल ज्यो� ही थोड़� आग� बढ़ती है, लो� निर्मा� विभा� का पत्थ� उसका रस्त� रो� देता है और पू� देता है, ऐस� कैसे आग� चल� जावोगे बेटा ?

ये दृश्� देखक� नायिका का ह्र्दय द्रवित हो उठता है…तुरंत अपनी किताबो� को हाथो� मे� समेट� मोटरसाइकिल को पीछे से धक्क� लगाक� सच्च� प्रेमी होने का फर्ज अद� करती है..लेकि� फि� एक पत्थ� � जाता है और मोटरसाइकिल के रिंग मे� फं� जाता है..नायक झल्लाक� कहता है, “तुम रहने दो…तुमसे � होगा, तु� बस झगड़� ही कर सकती हो।�

इतना सुनत� ही नायिका का मुंह ला� हो जाता है� वही� रु� जाती है� नायक नायिका की तर� घूरत� हु� मोटरसाइकिल को पत्थरो� के बी� से निकालत� है औऱ मनुहार करता है, अब चलोगी भी ? 

सच कहूं तो रहीमदास होते तो इस दृश्� को देखक� चा� डिजिटल आंसू बह� देते और अपना व्हाट्सए� स्टेटस अपडे� करते हु� लिखत�..

’प्रेम पं� ऐस� कठिन सब को� निबह� नाही�,

रहिम� मै�-तुरं� चढ़ी,चलिब�पावकमाहींę�

लेकि� रहीमदास जी को भी क्या ही पत� कि आज इस आर्टिफिशिय� इंटेलीजेंस के जमान� मे� मो� के घोड़� पर चढ़क� आग मे� चलना आसान हो चुका है लेकि� विधायक,मंत्री और ठीकेदारो� की कृपा से कु� ऐसी कटीली,पथरीली राहे� आज भी हर शह� मे� जिंद� है�, जि� पर चलना आग पर चलने से भी ज़्याद� मुश्कि� का� है�

इध� नायक का संघर्ष देखक� नायिका का ह्रद� द्रवित होकर कोलतार हो चुका है� अचान� प्रे� पर पढ़ी सारी सारी कविताए� एक-एक करके हवाओ� मे� बहने� लगी� हैं।

मन प्रे� की सपनीली पुका� सुनन� को व्याकु� हो रह� है..सोचती है, कितन� मेहनती और धैर्यवान प्रेमी पाया है उसने..जी मे� आत� है, इस� कही� छिपाकर रख दे�

वो इस दुर्गम रस्त� को धन्यवा� देती है� नेशन� हाइव� पर तो हर प्रेमी चल सकता है…असली प्रेमी वो है जो इस पथरीली रा� पर चलकर दिखा दे..नायिका दो-चा� सेल्फिया� लेती है..एक री� भी बनाती है�

ऐस� लगता है अचान� उस� बुद्धत्व की प्राप्ति हो चुकी हो� नायक भी मन ही मन मुस्करात� है…मुश्किल से सौ मीटर ही बच� हैं…आगे सड़क ठी� मालू� पड़ती है…नायिक� अपनी सांसों को रोकक� तुरं� पूछती है..”विधाय� जी तुमक� टेंड� दे रह� है � ? 

विधायक जी का ना� सुनत� ही मोटरसाइकिल और पत्थरो� के द्वंद्� मे� जूझत� नायक किसी दलबदलू प्रत्याशी जैसा जो� मे� � जाता है,”बी� से लेकर एम� तक पूरे पांच सा� उनके स्कार्पियो मे� पीछे बैठक� घूमे है�, हमको ठेका नही देंग� तो किसक� देंग� ?�

नायिका नायक के इस आत्मविश्वा� को देखक� मन ही मन मुग्� होती है� “ठेक� हो जाएग� तब तु� पापा से बा� करोग� मेरे लि�..?� नायक मुस्करात� है..बिल्कु� करूँगा�

नायिका सम� नही पा रही आग� क्या कहे…थोड़ी दे� बा� कहती है…”ठेक� मि� जाएग� तो सड़क अच्छी बनान�..थोड़� कम करप्शन करोग� तो भी मै� तुम्हारे सा� राजी-खुशी रह लूंगी.. “नाय� मुस्करात� है, “तुम बेवकूफ हो..आध� से अधिक पैसा तो कमीशन मे� चल� जाता है� आध� पैसे मे� अच्छी सड़क बनाऊंग� तो पैसे कैसे कमाऊंगा…अभी शादी बा� तुमक� बाली भी तो घुमाना है।�

नायिका सो� मे� पड� जाती है…मोबाइ� का नोटिफिकेशन देखती है. देखत� ही देखत� बाली की हसी� वादिया� उसकी इंस्टाग्रा� फी� मे� नांचने लगती हैं। तब तक टूटी सड़क की सीमा समाप्त हो जाती है, दोनो� एक आरसीसी रो� पर � जाते है�..नायिका का मन बदलत� है.. धीरे से हा� पकड़क� बोलती ठी� है बाबू ..पहले तु� पैसे कमाओ,पैसा बहुत ज़रूरी है।।

( दैनि� जागर� मे� प्रकाशित व्यंग्� )

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Published on November 23, 2024 22:31

November 20, 2024

आखिर शक्तिमान ने मा� ली हमारी बात�!

पहले शाकालाका बू�-बू� की पेंसिल से टीवी बनान� की ला� कोशि� कर चुके थे� शक्तिमान से भी कह� था कि क्या वो एक टीवी नही दे सकता� और चूंक� उस उम्र मे� गांव के लोकल देवताओ� पर ज्यादा भरोस� नही� था लेकि� उनसे भी तमाम मनौतियाँ की गई थी� कि हे मशान बाबा, एक टीवी का आशीर्वा� देने से आप छोटे नही� हो जाएंगे� मोहल्ल� मे� सबके घर तो है, बस हमार� घर टीवी � होने के कारण हमें बहुत कष्ट झेलन� पड़ रह� है�

आखिरका� मसान बाबा ने सु� लिया और घर वालो� ने एक सुबह घोषण� कर दिया कि चाहे� हिमालय मे� आग लग� या बंगा� की खाड़ी मे� पत्थ� परे। आज तो टीवी आक� रहेगी�

देखत�-देखत� ही ये ब्रेकिंग न्यू� पूरे गाँव भर मे� फै� गई� हमार� चेहर� पर रंगोली और चित्रहार दोनो� एक सा� उभ� आए..घर वालो� ने कह�, आज स्कू� मत जावो� पापा के सा� एक आदमी एक्स्ट्र� तो चाहि� न।

उस दि� सुबह नह� धोकर हम तैया� थे� इतना उत्साह और उमंग तो हमें सिर्� मेला देखन� के ना� पर ही आत� था�

अंतत� टीवी की दुका� � गई…ए� घण्ट� की माथापच्ची के बा� ब्रांड और साइज दोनो� डिसाइड हो गया। दुकानदार ने गारंटी कार्� बढ़ाया। और अंतत� हमें एक छोटे से कॉटन बॉक्� के दर्श� हु�.. पत� चल� कि इसको रिक्शे से घर तक ले जाने की सारी जिम्मेदारी मेरी है�

रिक्शे पर टीवी जी को रख� गया। हम एंटीना और ता� लेकर इस अंदा� मे� बैठे मानो� सती� धव� अंतरिक्ष केंद्र से को� मिसाइल लांच करने जा रह� हो�..रस्त� मे� जो दिखत�, उसके पूछन� से पहले ही बत� देते, टीवी है जी�!

आख़िरका� रिक्शा ने गांव मे� प्रवेश किया� घर की दहली� � गई� मोहल्ल� के सारे लो� अपने-अपने दरवाजे पर.. उस दि� रिक्शे से उतरक� लग� कि हम टीवी लेकर नही� बहुत सारी इज्ज� औऱ प्रतिष्ठ� लेकर लौटे हैं। और दुनिया से हम कह सकते है� कि देखो, हम बराब� है�, बिल्कु� बराबर।

अब हमार� पा� इतनी ताकत है कि हम कृषि दर्श� को भी रंगोली समझक� दे� सकते हैं। हमार� लि� खेतो� मे� गोबर का छिड़काव और मोरा जियर� डरने लग�,धक धक करने लग� जैसे गाने मे� को� अंतर नही है� क्योंक� आज से इस टीवी का स्वि� हमार� हाथो� मे� है�

अंतत� टीवी जी को एक मे� पर रख� गया। शु� का� से पहले अगरबती दिखा� जी� फि� तो मे� पर पड़ी धू� को अपनी स्कू� ड्रे� से सा� किया और बिना नहाए-धो� अगरबत्ती जलाक� तैती� कोटि के देवताओ� का स्मर� किया कि हे प्रभ� अब आप ही इस टीवी की रक्ष� करना�

लेकि� तब शायद शु� मुहूर्� नही था� दादी ने कह� भी था कि टीवी पर सबसे पहले जय हनुमान चलेगा…सिनेम� नही चलेगा। शु� का� भगवा� से शुरू होना चाहिए।

हमने कह�, नही, आज तो शुक्रवार है, आज तो फ़िल्� आएगी, आज ही टीवी चलेगा। इतना सुनत� ही अचान� बिजली चली गई� मन का आंगन अंधेरे से भर गया। सारा चित्रहार झिलमिल� उठा। दादी ने कह�, देखो, हम कह� थे � कि मत चलाओ आज..अब लो�

दि� के कोने मे� दबी सारी चीखे� बाहर आन� को हो आई� हा� रे बिजली तूने ये क्या किया�

बग� के एक चाचाजी से देखा � गया…उन्होंन� कह�,”कोई बा� नही�..हम बैटरी लाते है�..टीवी तो आज ही चलेगा।

आखिरका� बैट्री � गई� टीवी के झिलमिलान� और खसखसान� का एक मधुर ना� वातावर� मे� गुंजायमा� हो उठा। सबके मुरझाए चेहर� पर रा� रानी के फूलो� सी रौंन� उत� आई..

और एंटीना हिलाते-हिलाते ये पत� चल� कि टीवी पर तो बाज़ीगर � रही है� जो हारक� जी� जा�, उस� बाजीगर कहते� हैं। उस रा� हम भी तो हारक� जीते थे� रा� भर टीवी के सामन� हम बाजीगर बनकर बैठे ही रह गए�

सुबह उनीदी आंखो� से उठे। माताजी ने कह� आज तो स्कू� है, स्कू� जावो� दादी ने कह�, जाने दो, इस� नींद � रही� सो जावो, मंडे को जाना�

हमार� तो मज� ही हो गए� शनिवार से लेकर पूरे रविवार के हर प्रोग्रा� हमने तब तक देखा, जब तक बाबा ने आक� ये � कह दिया कि टीवी को थोड़ा आराम कर दो, देखो तो एकदम हीटर के माफ़ि� गर्म हो गया। जल भी सकता है�

हमने टीवी बन्द कर दिया� और सोमवार को सीना चौड़ाकर स्कू� पहुँ� गए�

अब स्कू� मे� हम भी उन चं� छात्रो� मे� से एक थे, जो रा� को आन� वाले टीवी सीरियल्स और फिल्मो� की कहानियों के बारे मे� विशेषज्ञ होने का दावा करते थे� हमने भी सबको बाज़ीगर की कहानी बताई� बताय� कि शनिवार को बेता� मे� क्या हुआ। रविवार शा� चा� बज� से आन� वाली फ़िल्� मासू� कितन� मासू� था�

आमतौ� पर टेलीविजन चर्च� मे� सबसे पीछे रहने वाले मु� बालक को देखक� उस फील्� के जानकारों मे� हड़कम्प मच गई� भा� आखिर ये मार्के� मे� टीवी का नय�-नय� एक्सपर्ट कबसे पैदा हो गय� ? हमने शा� से बताय�, अब हमार� घर भी टीवी � गया।

कु� ही दे� मे� असेंबली का सम� आया। प्रिंसिप� ने कह�, क्लॉ� फाइव वाले जो लो� शनिबार को स्कू� नही आए थे, खड़� हो जाएं� क्लॉ� टीचर ने अपना एंटीना हमारी तर� घूमा दिया� हमने खड़� होकर उस सम� स्कू� � आन� के सारे बहान� गिना दि�, जैसे भै� की तबिय� खराब थी..बु� मर गई है�..मौसा हॉस्पिटल मे� हैं।

लेकि� चूंक� पिछ्ले हफ्त� बु� को हम एक बा� मा� चुके थे, इसलि� इस बा� फूफा को मारक� का� चलान� पड़� तब तक एक लड़के ने उठकर कह�, नही सर, ये झू� बो� रह� है, इसके घर टीवी आय� है � ?

इसके बा� तो हमारी इतनी पिटा� हु� कि हम खु� दूरदर्शन बन गए और सारा स्कू� दर्शक।

आज स्मार्टफोन के दौ� मे� पैदा होने वाली पीढ़ी भल� � इसका महत्� � सम� सके। लेकि� इंस्टाग्रा� की रिल्� स्क्रॉ� करते हु� पच्ची� सा� पहले एक टीवी के चक्क� मे� पीटे जाने का सु� या� करके मन रोमांचित सा हो जाता है�

हम जीवन के सबसे उबासी भर� सम� मे� बा�-बा� उसी टेलीविजन के सामन� जाकर बैठे, ये जानत� हु� भी कि इसके सामन� बैठक� हम वक्त से पहले बड़� हो जाएंगे�

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Published on November 20, 2024 21:52

July 1, 2024

नवकी बहुरिय� का सिनेमा

आम के दिनो� मे� सरेआ� मा� खाने का सु� या� करने बैठू� या आम के बगीचे मे� झूला झूलत� हु� टहनी के टू� जाने का दुःख ? गिल्ली-डंडा के लि� मैदा� खोजन� की जद्दोह� या� करूँ या या बिना बिजली के शक्तिमान देखन� के लि� प्रयोग मे� ला� गई अवैध शक्त� को या� करूँ ?

आंखो� के सामन� सतरंगी यादो� का एक ऐस� सुंद� लैंडस्के� बनके उभरत� है, जहां उजले आंसू भी मोती जा� पड़तें है�..जहां रोना भी संगीतम� लगता है� जहां खेलन� भी ध्या� बन जाता है..जहां हंसन� भी एक आध्यात्मिक अनुभ� लगता है�

बा� बस उन्ही� बचपन के दिनो� से शुरू होती है। कक्षा पांचवी� पा� करके हम छठवी� मे� जाने की तैयारी कर रह� थे� स्कू� खुलन� मे� मुश्कि� से दस-बारह दि� ही बच� थे� गर्मी इतनी थी कि छांव भी छाँव मांग रही थी� और पानी को भी प्या� लग रही थी� जानव� से लेकर आदमी और चिरई-चुरूंग तक सबकी हल� सु� रही थी� सुबह होते ही दोपह� हो रह� था और शा� होते ही ट्यूशन वाले सर � जाते थे�

इध� बा�-बगीचे-फुलवारी मे� बड़े-बुजुर्गो� का कब्ज� हो चुका था……ह� गलती से अग� बगीचे मे� चल� जाते तो लो� ग्लोबल वार्मिंग को नही�, हम बच्चों को गर्मी बढ़न� का सबसे बड़ा कारण माना जाता� फुलवारी से निकलकर अग� हम जवानों के पा� जाते तो उनका लगता कि उनके प्रे� प्रसंग की खब� पूरे गांव मे� ली� करने के पीछे हमी� लोगो� का हा� है� वो भी हमें भग� देते�

इस दुर्दि� मे� हम कही के नही रह� थे� हमें ये एहसा� हो चुका था कि धोबी के गध� भी हमसे मज� मे� जी रह� हैं। कम से कम वो घा� जाकर पानी मे� नह� तो सकते है�..हम तो बिना आज्ञ� के टयूबेल पर भी नही जा सकते हैं।

इस अत� रंजि� हालत मे� ले-देकर हमार� पा� दूरदर्शन का ही सहार� था� वही हमार� लि� दव� था और वही हमार� लि� रो� भी� सुबह उठकर आम खाने के बा� टीवी के सामन� बैठक� बिजली आन� के लि� पूजा-पा� शुरू करना पड़ता। एक आदमी की ड्यूटी एंटीना ठी� करने और उस� आंधी से बचान� के लि� लगाई जाती� उस� बताय� जाता कि भा� एंटीना अग� हि� गय� तो रंगोली को कृषि दर्श� बदलन� मे� एक सेकेंड का भी दे� नही� होगा�

एक दि� पूरे गांव भर की बिजली हा� हो चुकी थी� छत पर लटका पंखा मं� गत� से खट�-पट� करता हु� बत� रह� था कि बच्चों अब क्या, अब तो एक हफ्त� मे� स्कू� खुलन� वाला है� फटाफ� तैयारी करो�

तब तक अचान� लो वोल्टे� की समस्या ठी� हो गई..हम टीवी की तर� भगे…औ� टीवी खोलत� ही हमार� सबसे प्यारे साथी दूरदर्शन ने एक धमाकेदार सूचन� दी..बच्चों, इस रविवार को हम दिखाने जा रहें है�..!

हम सबकी आंखे� चौड़ी हो गई…क्य� � रह� है भा� ? हमने देखा, साक्षा� शाहरूख खा� टीवी स्क्री� पर नांच रहें हैं…तनि� और ध्या� से देखा तो पत� चल� शाहरुख खा� नही� बाजीगर है� जो जी� के हा� जा� उस� बाजीगर कहते� हैं।

क्या संडे को बाज़ीगर � रही ? मझली भाभी जो अभी नईहर से दहेज मे� टीवी लेकर आई� थी, उन्होंने झट से पू� दिया.

हमने कह�, हं यही तो दुःख की बा� है भाभी कि बाजीगर � रही है वरना हम सब तो सनी देओल की फ़िल्म का इंतज़ा� कर रह� थे�

भाभी ने कह�, अर� तो हम � इंतज़ा� कर रह� थे शाहरूख की फ़िल्म का� भगवा� ने हमारी सु� ली है� अब आएगा मजा।

“आएं मज� आएगा ? � अर� मज� तो आपको आएगा भाभी जी, हमें तो कक्त� नही� आएगा�

“काहें, काहे� नही� आएगा मज़ा, एक नम्ब� की फ़िल्म है, डीडीएलजी हमने चा� बा� देखा है� बाजीगर देखिये तो कैसे नही� आत� है मज� ?�

हमने भाभी से कह�, “ऐसा है भाभी जी, हम है� बच्च� लोग। हमें ‘ह� सिमरन� कहने वाला शाहरूख उतना नही� भाता, जितन� ये ढा� किलो का हा� वाला सनी देओल भाता है� आपको देखन� है तो देखिये हम लो� अब जा रहें है।�

भाभी ने कह�, जल्दी निकलिए.. कमरा खाली करिय�.. 

हम सब कमरे से बाइज्ज� निकल तो आए लेकि� शाहरुख खा� का दि� टूटन� से पहले हमार� दि� टू� जाने की ये पहली घटना थी�

हा� रे! हमार� सनी देओल आपकी की ऐसी बेइज्जती..

हम चारो� मे� से सबसे छोटे चंडा� बबलू ने� खालि� नास्ति� होते हु� कह�..इसलि� हम भगवा�-वगवा� पर भरोस� नही करते� आज एक हफ्त� से मनौती कर रह� है� कि हे प्रभ� जिद्दी या घायल डीडी वन पर � जा�.. लेकि� ये क्या � गया…बाजीगर ? अब लो देखो..सारी औरते� घेरक� बै� जाएंगी�

हम ती� आस्तिकों का मुंह श्रद्ध� से नीचे गि� गय�.. चल� तब, सांप-सीढ़ी खे� लेते हैं। का करेंगे� ये सन्ड� भी बर्बाद चल� गया।

बबलू ने कह�, है को� जग� खेलन� की ? चा� बज रह� है। अ� तो मा� लो कि भगवा� नही होते� इतना कहते ही आसमा� मे� जो� की हव� उठी और गर्जना के सा� आसमा� मे� खू� बड़ा प्रकाश फै� गया।

चंडा� चौकड़ी के चंदन ने कह�, लगता है, भगवा� बुरा मा� गए भा�..इसलि� कहता हू�.. भगवा� को उल्ट� सीधा मत कह�..सु� लि� तुम्हारी बा�, नाराज़ हो गए…आ गई आंधी और बारि� अब भुगतो�

देखत� ही देखत� बिजली कड़कने लगी..मूसलाधार बारिश…थोड़ी दे� मे� पत� चल� कि गर्मी से राहत तो मि� गई है लेकि� गाँव का ट्रांसफार्मर फूंक गय�..पन्द्र� दि� बिजली नही� आएगी�

अब बड़ी समस्या है कि मन कैसे लगेग� जी ? अपनी तो किस्मत ही खराब है ? हमने� तो कैरम खे� लिया, कॉमिक्� पढ� लिया� छत पर सांप-सीढ़ी खेलत� खेलत� सीढ़ी से गिरक़र पै� मे� चो� भी लगवा लिया� सन्ड� को बाजीगर भी झे� ही लेते लेकि� ये ट्रासंफार्मर?

दोस्तो�, ट्रांसफार्मर का फूंकना हमार� ऊप� हु� सीजन का पहला वज्रपा� था� चंडा� चौकड़ी के वरिष्ठ चंडा� अनुज बाबू उर्फ लोटन ने सकारात्मकत� का संदे� देते हु� कह�, भा�, ट्रांसफॉर्मर फू� गय� तो क्या…छुट्टी बेका� नही� जाने दिया जाएगा…गुल्ल� फोड़कर वीसीआर मंगाते है� औऱ मनपंसद फ़िल्म देखत� हैं। 

नई-नवेली भाभी जी ने हमार� इस प्रस्ताव का समर्थन किया और कह� कि अग� वीसीआर पर सबसे पहले बाज़ीगर चलेगी तो मै� आप लोगो� को पचास रुपय� दे सकती हूं।

“अच्छा, और देखेंग� कहाँ ? कही� जग� बच� है जो देखेंग�..?�

भाभी ने कह�, यही�, रा� को आंगन मे� सारे लो� इकठा होकर दे� लेंगे। बाबा-दादी भी � जाएंगे�

प्रस्ताव तो सुंद� था� बड़ी सी रंगी� टीवी, ढ़ेर सारे फिल्मो� के कैसेट्�.. वीसीआर..� बिजली जाने का झंझट और � ही दूरदर्शन पर प्रचार देखन� की मजबूरी.. भा� वीसीआर मंगाते है�, मज� ही � जाएग�..

कहते है�, हर रा� मे� कु� विकृ� स्वर होते हैं…पिंटू जी ने भाभी के प्रस्ताव का असमर्थ� करते हु� सरका� गिरा दिया और कहा…अगर वीसीआर आय� तो सबसे पहले दिलवाले� घायल, बार्डर जी� और बेता� चलेग� वरना कु� नही� चलेगा।

भाभी ने अपनी जि� और बेताबी बढात� हु� कह�, तब वीसीआर नही� आएगा, तु� लो�, जहां मन कर� देखन� है देखो..यहां पहले चलेग� तो सिर्� बाज़ीगर…वरन� बाबा से कहकर जय संतोषी मा� लगवा दूँगी�

इस धमकी के बा� हम सबका दि� घायल हो गया। ऐस� लग� कि अब जि� छोड़ देने मे� ही भलाई है� हमार� बालसखा मनुज ने कह�, हटाओ या�, हटाओ, संडे को भाड़� पर बैटरी मंगाते है� औऱ डीडी पर बाजीगर ही दे� लेते है�..भल� सनी देवल वाला मज� नही� है लेकि� को� इतनी भी खराब फ़िल्म नही� है�

वो क्या है कि टीवी वाले हमेश� मा�-पी� तो नही दिखा सकते, सरका� कहती है समाज बिगड़त� है� इसलि� बी�-बी� मे� मारपी� रोकक� थोड़� प्या�,मोहब्ब्त भी देखत� रहना ज़रूरी है�

मनुज की बा� ने हम पर अस� किया..इच्छाओ� के अनंत पहाड� पर चढ़क� गर्मी से हा� चुका मन रविवार को बाजीगर देखन� के लि� बेचै� होने लगा। उंगली पर गिनक� देखा कु� पांच दि� थे� इन दिनो� इंजीनियर बन चुके रव� ने सवाल किया…य� बताओ, सन्ड� को बैटरी मि� जाएगी � ?

बिलकुल मिलेगी,  तु� दस रुपय� दो, हम अभी बु� करके आतें हैं।

बहरहाल गिनत�-गिनत� रविवार � गय�..शा� को ती� बज� से ही टीवी घेरक� हम सब बै� गए…फ़टाफ़ट बैटरी ला� गई..बैटरी आन� से जो सबसे ज्यादा खु� हू� वो हमारी भाभी जी थी…उन्होंन� कह�, अबकी बा� लुधियाना से भइया आएँग� तो चूड़ी,बिंदी, टिकुली, सेनू� नही� बल्क� सबसे पहले एक बैटरी और चार्जर ही मंगाएँगी�

पिंट� ने कह�,रम� की भाभी तो गुल्लक तोड़कर बैटरी खरीदी हैं। आप भी काहे� नही� खरी� लेती है� ?

भाभी ने कह�, � हमसे चा� सा� पहले ब्याहक� आई थी…ठी� है ? जल्दी से बैट्री लगाक� बाजीगर दिखा�, बवाल � बतियाओ..

बैटरी लगी..लेकि� हम दे� रह� है�, बाज़ीगर तो नही� � रह�, विज्ञापन � रह� है.. और विज्ञापन आत�-आत� अचान� टीवी की स्क्री� छोटी होने लगी और टीवी से एक अजीबोगरी� आवाज आन� लगी ,जिसक� मतलब ये था कि भैया अब बैटरी को निकालो..क्योंक� ये खु� चार्� नही है�

टीवी के सामन� बैठे घर के बड़े बुजर्ग और बच्चों का सारा करें� उड� गय�..ये बैटरी वाला लल्ल� तो ठग दिया रे..ये तो बड़ा बेईमान आदमी है…इसकी दुका� पर अब बैटरी लेने कभी नही� जाना है।।

सबके चेहर� लट� गय�..एक ठंडा सन्नाट� पस� गया…ट्रांसफ� तो फूंक ही गय� था…बैट्री भी डिस्चार्� हो गई..

चल� अब गुल्ली डंडा ही खेलत� है�..हम सब मुंह लटकाकर बाहर निकल गए..तभी हमारी नई-नवेली भाभी ने हमें देखा और प्या� से बुलाकर पांच सौ का नो� देते हु� कह�, जाइए वीसीआर लाइय�..आज फ़िल्म चलेग�..

हा�, इस एक शब्द को सुनक� ऐस� लग� जैसे उजड़� चम� मे� बहार � गई हो..तपते रेगिस्ता� मे� बारि� हो रही हो�

गांव के पश्चिम टोले मे� हम चा� लो� उसी सम� वीसीआर वाले के पा� दौड़कर भागे…भागने की स्पी� अग� उसैन बोल्� दे� लेते तो शरमा जाते� हमने वीसीआर वाले के पा� जाकर कह�.. जिद्दी, घायल, बेता�,ग़दर, जानव�..

चंडा� चौकड़ी के पिंट� ने कह�, ये मत भूलो…पैस� नई वाली भाभी ने दिया है, बाजीगर भी लेना पड़ेगा। ह� तो बाजीगर ले लो�

वीसीआर वाले भैया ने बाजीगर ले ली…देखते ही देखत� पूरे टोले मे� ये खब� फै� गई कि ट्रांसफर फूंक जाने के गम मे� आज शक्त� बो भौजी के सौजन्य से सिनेमा चलेग�..

आस-पड़ो� की हर औरतो� ने जल्दी-जल्दी भोजन बन� लिया..चाचा-पापा टाइप के लोगो� के लि� अल� से कुर्सी मंगाकर बैठन� के लि� ऐस� सिटिंग अरेंजमें� करना पड़ा ताकि गांव की औरते� सिनेमा देखत� सम� असहज � हो जाएं�

बहरहाल वो घड़ी � गई..जिसक� हमें बेसब्री से इंतज़ा� था� वीसीआर वाले भैया ने कह�, अगरबती जलाइए…औ� बताइये, कौ� सिनेमा पहले चलेग� ?

दादी ने कह�, पहले तो रामायण चलेग�.. बाबा भी इस बा� से सहमत थे� बड़की मम्मी ने कह�, नदिय� के पा� लग� दो। ए� बुद्धिजीवी किस्� के चाचा ने कह�, गाइड लग� दो, वही ठी� रहेगा�

देखत� ही देखत� सारे लो� अपनी अपनी पसन्� थोपन� लगे। मामल� घू� फिरक� फि� नई वाली भाभी के पा� गया�

अर� नवकी बहुरिय� का मन है � जी सिनेमा का..वो जो कहेगी वही सिनेमा चलेग�.

अब गेंद उनके पाले मे� थी� हम सब बच्च� ये जानत� हु� कि बाज़ीगर ही पहले चलेग�.उनकी तर� देखन� लग�.पांच मिनट का सन्नाट� रहा…फिर.भाभी ने बड़ी दे� तक सोचक� कहा…कोई सनी देओल की फ़िल्म लग� दो भइया..

हा�.. इतना बड़ा त्याग…ह� बच्च� भाभी के चर� मे� गि� पड़े।।टीवी पर शुरू हु� फ़िल्म घायल..और आसमा� मे� बारिश।

उस बारि� मे� ट्रांसफ़� फूंक जाने और बैटरी के डिस्चार्� हो जाने से घायल पड़े मन को घायल देखक� जो मन को आराम मिला..आज उसके लि� शब्द नही� है�

आज बी� सा� पीछे की ये सब बाते� किसी दूसर� जमान� की लगती है�..

आज चंडा� चौकड़ी मुम्बई,पुणे बैंगलो� मे� शिफ्� हो चुकी है� भाभी भी इंस्टाग्रा� पर रिल्� बनाती है�..हमार� गाँव के लड़क� � अब सिनेमा देखन� के लि� बैट्री मंगाते है� और � ही वीसीआर..अब उनका जीवन ही रिल्� मे� सिमटकर एकाकी बन चुका है�

इस भागत� हु� एकाकी हाला� मे� उस ठहरे हु� दौ� को बेमतलब का या� करते रहना क्यो� जरूरी है, ये बह� का विषय है�

लेकि� आज भी उस गर्मी की या�, आज आत्म� के किसी कोने मे� जल रह� वक्त को ठंडा करती है..औऱ दि� कहता है..अभावों से भर� बचपन का वो सतरंगी संसा� सच मे� कितन� सुंद� था।�

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Published on July 01, 2024 04:40

June 13, 2024

कौ� जा� है� मास्टर साहब ?

पिछल� दिनो� बनार� के आसमा� मे� एक अनजानी सी खुशी फै� गई� देखत� ही देखत� सामन� घा� से लेकर गोदौलिया तक की गलियों के वो सारे कमरे खाली होने लग�, जिनमें कभी तानपुर� की आवाज़ गूंजती थी तो कभी झपता� के रेले बजते थे�

अपने दो सौ सा� पुराने घर को गेस्� हाऊस बनान� का सपना दे� चुके उन खूसट मकान मालिको� की आंखे� भी चौड़ी हो गई�, जो हर महीने कस� खाते थे कि अब इन गाने-बजान� वालो� को घर नही� देना है�

चा�-पा�, कचौड़ी, जलेबी और ठंडई से लेकर भांग का गोला बेचन� वाले तक पूछन� लग� कि � गायकवा बुजर� वाले एतना काहे� उछलत हौवन गुरु ?

कहते� है� बनार� की हव� मे� उछलत� इन सवालों का ठी�- ठी� जवाब � किसी मकान मालि� के पा� था, � ही किसी दुकानदार के पास।

एक सुबह संकटमोचन मंदि� की बा� है�

सा� सा� से फू�-माला बेचन� वाले फू� कुमा� ने बीएचयू से एम म्यू� करके पीएचडी कर चुके गायक संदी� सिंह को जीवन मे� पहली बा� मोतीचू� का लड्ड� खरीदत� देखा और पू� दिया�

“आ� कु� जादा ही खु� लग रह� है� गुरु, का बा� है ?�

संदी� सिंह ने आधी झड़ चुकी जुल्फो� को लहराकर कहा�

“नही� जानत� है� ?�

“बताएंगे तब तो जानेंग�..!�

“मास्ट� बन गए हम !�

“कहंवा गुरु�.?�

“बिहार में�.म्यूजि� टीचर !�

“मने सरकारी नोकरी � ?�

“एकद� सरकारी..बस तनखा� तनी कम है…�

‘क� बेसी का होता है जी, सरकारी है �..जल्दी से जाके परसादी चढ़ाव� गुरु..� � सब बा� झड़ जाइत..नोकरी ना� मिलित।

फू� कुमा� की बा� सुनक� संदी� बाबू ने हा� जो� लिया..

“ह�, भइया…ह� ग्रेजुएश� किये, पोस्� ग्रेजुएश� किये, एम.फि� किये, जेआर� हु�, नवोद�, केंद्रिय से लेकर असिस्टें� प्रोफेसर तक, सबका परीक्षा दे-देकर थक गए..और मा� लि� कि अब कही� कु� नही� होगा…प� धन्य है बाबा, आज कृपा हो गई� एक पा� लड्ड� बढ़� देंग� का ?�

ये सुनत� ही फू� कुमा� ने लड्ड� क्या फू�-माला तुलसी अगरबत्ती से लेकर कपूर तक सब बढ़� दिया और बढ़ात� ही एक ऐस� प्रश्न पूछा जो आज तक किसी भी प्रतियोगित� मे� नही� पूछा गय� था�

“ए सन्दी� बाबू ?

“ह� जी�

“त� तो बनार� छू� जाएग� � ?�

ये एक ऐस� लघुउत्तरी� प्रश्न था, जिसक� उत्त� बनार� को विदा करने वाले हर विद्यार्थी ने किसी भी किता� मे� नही� पढ़� था�

संदी� बाबू की आंखो� की को� गीली होकर जबाब देने लगीं। मन द्वंद्� के भंवर मे� फंसन� लगा। भावनाओ� का ज्वा� मा� गंगा के आंचल और बाबा विश्वनाथ की जट� मे� उत� आया।

या� आन� लग� वो दि�..

जब संदी� बाबू बारह सा� पहले झोला लेकर कैंट स्टेशन उतरे थे� वो दि� जब उनका बीएचयू मे� एडमिशन हु� था� वो दि� जब वो पहली बा� हॉस्टल मे� पहुँचे थे� पहली बा� गंगा नहाय� था, पहली बा� उस गली मे� किसी का हा� पकड़ा था..बड़� ही भारी मन से कह�..

“आदमी बनार� छो� देता है, बस बनार� आदमी को नही� छो� पाता� घबराइए नही�, यही सिवा� जिला मे� स्कू� मिला है…ह� शनिच� को आएँग�..!�

फू� कुमा� ने भारी मन से कह�, “संदी� बाबू, जो बनार� से चल� जाता है, � बनारसी बन के नही, टूरिस्� बनके आत� है गुरु.. हम भी यही� है�, देखेंग�, आपको महादेव की कस�, बस हमको भू� मत जाइएगा।�

कहते है� संदी� बाबू संकटमोचन मंदि� से लड्ड� चढ़ाक� लौ� आए� अगली सुबह ज्वाइनिं� करने की तैयारी थी� रा� को ट्रे� पकड़न� था� मन मे� रवानगी थी..दि� मे� उत्साह�

कमरे पर आए तो मकान मालि� ने संकटमोचन के लड्ड� के सा� ती� हजार रुपय� देखक� उनको ती� बा� ऊप�-नीचे देखा और अचंभित होते हु� पूछा�

“बड़ा जल्दी किराया दे दि� बाबू ?�

संदी� बाबू ने कह�, “कमर� खाली कर रहें है� अंकल..अब को� आधी रा� को रिया� करके आपकी नींद खराब नही करेगा…�

इतना सुनत� ही हर महीने कमरा खाली करने की धमकी देने वाले अंकल � जाने क्यो� दुःखी हो उठे।

“ए संदी� बाबू…गान�-बजान� वाले तनिक हल्ल� तो करते है� लेकि� किसी से बत्तमीजी नही करते� जाइय� बबुआ या� आएँग� आप…�

संदी� बाबू ने अंकल को नमस्ते किया.. सारा सामा� और दस सा� की सारी स्मृतियो� को दो-चा� बोरी और बै� मे� समेटकर बाबा विश्वनाथ को शी� नवाय� और अगली सुबह � गए..जिला सिवा�..

सुदू� एक गाँव…आते ही देखा..

सड़� यहां टूटन� के लि� बनी है� बिजली यहां जाने के लि� आती है..लो� यहां मरने के लि� जीते है�..स्कू� यहाँ बच्चों को पढ़ाई से दू� करने के लि� खोले गए हैं।

स्कू� की हालत देखत� ही बीएचयू से ली हु� पीएचडी की डिग्री हंसन� लगी� दस सा� तक बड़� ख्या�, ध्रुपद, धमार, और ठुमरी का किया गय� रिया� अट्टाहास करने लगा।

संगीतशास्त्र के वो गूढ़त� सूत्� रोकर पूछन� लगे�

“ए संदी� बाबू…ब� महराज…इतन� पढ़-लिखक� इहाँ पढ़ाएंग� ? � जहां कायद� का एक कमरा है, � बैठन� की जग� ? इहां पर ?�

संदी� बाबू अभी रजिस्ट� पर हस्ताक्ष� करके सो� ही रह� थे तब तक उस गाँव के मुखिया जी � गए�

प्रिंसिप� साहब ने परिच� कराया। मुखिया जी ने संदी� बाबू का गह� निरीक्षण किया और पूछा..

“अच्छा तो मतलब अब यहां नांच-गाना का भी पढ़ाई होगा..है � ?�

प्रिंसिप� साहब ने सफाई देते ही कह�..”अरे सर, हमार� विद्यालय मे� संगी� था, बस अध्याप� नही� था,अब नीती� कुमा�, तेजस्वी जी ने भेजा है तो ललका� के संगी� का पढ़ाई होगा� अपने स्कू� से भी को� खेसारी और को� निरहुआ निकलेग�, का जी सर ?�

संदी� बाबू ने सर पी� लिया और पूछा, “स�, इसमे� संगी� का कमरा कहाँ है ?�

प्रिंसिप� ने कह�, “पूर� स्कू� आपका है सर.. जहाँ मन कर� कमरा बन� लीजिये..जाइये।�

संदी� बाबू ने देखा स्कू� मे� बस ती� ही कमरा है…इसी मे� पूरा स्कू� है…कुछ दे� सोचक� पूछा..”स� कु� सा�-बा� है, बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे�? �

प्रिंसिप� साहब ने कह�, “अभी � बज� के बिना खु� ही हम झुनझुन� बज� रहें हैं। तब तक गाना-वाना गवाक�, नचवाइय�-कुदवाईये, � कौ� सा गाना आजकल री� मे� चल� है..महरू� कल� सडीया� हम भी एक री� बनाए है� उस पर…बाकी…साज-बा� का हम देखत� हैं।�

इध� सामन� बैठे मुखिया जी की समस्या � स्कू� की इमार� थी, � ही सा�-बा� का बज�, � ही महरू� कल� सड़िय�..उनकी समस्या कु� और थी.. उन्होंने संदी� जी से पूछा..

� � संदी� जी, संदी� सिंह मतलब ?�

संदी� जी फट से बोले�

“जी, संदी� मतलब मशाल…जलत� हु� मशाल..!�

मुखिया जी ने कह�, “उ थोड़े पू� रह� है�, कास्� कौ� है आपका ?

संदी� बाबू सकपक� गए..ये एक ऐस� सवाल था जिसक� लि� वो तैया� � थे� बड़� ही शाली� अंदा� मे� कहा�

“टीचर से जाति नही� पूछा जाता है� ऊप� से हम कलाकार…संगीतकार का को� जाति नही होता।�

मुखिया जी नही� माने�.”मतल� कु� तो होगा ही…बताइय� न�?�

संदी� बाबू ने उस दि� टा� दिया और क्लॉ� लेने चल� गए�

ठी� अगले दि� गाँव के एक बड़� ही सम्मानित व्यक्त� शर्म� जी को लेकर गांव के मुखिया जी कार्यालय मे� उपस्थि� हुए। मुखिया जी ने शर्म� जी से कह�, “इनस� मिलि� संदी� बाबू है�, संगी� के नए अध्याप�..बलिय� जिला घर है जी…�

शर्म� जी ने संदी� बाबू को गौ� से देखा और पूछा..

“ए संदी� बाबू..आपके पिताजी का पूरा ना� का है ?�

संदी� बाबू ने कह�,”जी उनका ना� शिवजी सिंह है।�

“औ� बलिय� मे� आपका गाँव कौ� सा है ?�

“जी बलरामपुर…�

“बाब� साहब लोगो� का गाँव है का ?�

संदी� बाबू ने कह�, “ऐसा तो नही�, हर जाति के लो� मेरे गांव मे� हैं।�

शर्म� जी मन मसोसकर बोले.. “आ� लो� का शादी बिया� तो बाबू साहब लोगो मे� ही होता होगा � ?�

संदी� बाबू के दिमा� और क्ला� दोनो� की घण्टी लग गई� उन्होंने इस प्रश्न के उत्त� मे� चु� रहने का फैसल� किया..और उठकर चल� गए..शर्म� जी लज� गए..और धीरे से बोले..

“नही,मतलब, सिंह तो बाबू साहब भी लिखत� है, कुर्मी भी औऱ भूमिहा� भी..तनिक क्लियर करना चाहत� थे।�

संदी� बाबू ने एक गहरी सांस लेकर कुर्सी से उठ� औऱ सीधे क्लॉ� जाकर ही रुके�

इध� मुखिया जी ने आं� तरेरकर कह�, “ई संदीपव� � बड़� बदमा� मास्टर है � प्रेन्सप� साहब..ससुर� के पा� तमी� नही है…�

प्रिंसिप� ने कह�, � � मुखिया जी…हमक� तो बाबू साहब लग रह� आपको कव� जा� लगता है ?

मुखिया जी ने कह�, “न �, बाबू साहब नही, पक्क़� भूमिहा� है..शक� से चालू लगता है साला।�

शर्म� जी बोले..”न..�..लि� लीजिये कुर्मी है� � बग� वाला कुर्मी है, � जो बैंग� बोता है, उसी से हं�-हंसक� बतिय� रह� था� अर� ! एक दि� सारा कागज पत्त� मांगिय� �, किलियर� हो जाएगा।�

छह महीने से अधिक हो गए…कहत� हैं…बीएचयू से गायन मे� पीएचडी करने वाले संदी� बाबू की जाति पर पीएचडी आज तक चल ही रही है�

आज भी पूरे गाँव को इस बा� कि चिंत� नही है कि संदी� बाबू को संगी� का ज्ञा� कितन� है ? कितन� पढ़� है संगी� रत्नाक�, कितन� जानत� है� नाट्यशास्त्र को ?

कौ�-कौ� सी सुविधा दी जा� तो संदी� बाबू हमार� बच्चों को बेहत� संगी� सीखा पाएंगे..

चिंत� इस बा� की है कि संदी� बाबू बाबू साहब है, भूमिहा� है� कि कुर्मी है� ?

ताजा समाचार तक संदी� बाबू दुःखी थे� अपने मुम्बई बैठे एक लेखक दोस्� से ये कहते हु� लगभग रोने लगे�

� अतुल, तु� ठी� किये फारम नही भर� बे…हमर� मन कर रह� छो� दे� हम..बनारसे ठी� था..कभी-कभी तो मन ही नही� लगता है हमार�..ऐस� लगता है, साला कहाँ � गए.?�

यहां रा� और ता� की जाती जानन� से ज्यादा इस समाज को टीचर की जाति जानन� मे� रुचि है�

लेखक ने संदी� बाबू को दिलासा देकर लिखा है�

� दोगल� समाज है संदी� बाबू..ये सोशल मीडिया पर मनुष्यता, विका�, शिक्षा, स्वास्थ्�, पढ़ाई, रोजगार की बड़ी-बड़ी बा� करता है लेकि� वो� देने जाता है तो अपनी जाति के नेता को देकर � जाता है और पाँच सा� रोता है

इस समाज के लो� अब एक अध्याप� को उसके ज्ञा� से ज्यादा उसकी जाति का ज्ञा� रखने मे� रूचि � लेंग� तो कौ� लेगा ?

और ये समस्या बस गाँव की नही है भा�.. दिल्ली से लेकर गांव तक सब जग� कुंए मे� जातिवादी भांग पड़ी है� समानता का झंडा ढोने वाले तमाम प्रोफ़ेसरों का को� रिसर्च स्कॉलर आज तक को� दलित नही बन� है�

वो तमाम प्रगतिशी� पत्रका� बिहा� जाकर सबसे पहले यही पूछत� है� कि कौ� जा� हो ? इसके आग� वो बढ़ नही पा� हैं।

ये तो फि� भी गाँव के लो� है�..इनका का दो� है ?

इसलि� हे संदीप�.तु� जाति जनवाने और जानन� की कभी चिंत� � करना�

तु� चिंत� करना उन मासू� आंखो� की, जो कॉन्वेंट � जा पाने के अभाव मे� तुम्हारे आग� रो� बैठती हैं। औऱ भारी उत्साह से देखती है� तुम्हारी तर�.. किसी उम्मी� में।

उन उम्मीदो� को धूमि� मत होने देना�

उनमे� वो लयात्म� संस्का� भरना ताकि आग� से वो किसी अध्याप� से उसका ज्ञा� जानन� की कोशि� करें�.उसकी जाति नहीं।

ये लोकसभा-विधानसभा के चुना� होंग�, नेता-मुखिया आएंग�-जाएंगे..जाति जानन� की सरकारी ड्यूटी क़ल तुम्हारे कंधे भी आएगी� लेकि� एक विद्यार्थी भी ऐस� निकल गय� जिसक� अध्याप� की जाति जानन� मे� रुचि नही है उसका ज्ञा� जानन� मे� रुचि है तो जागरूकता की मशाल जल जाएगी संदीप।

इस समाज को बेहत� तुम्हारे जैसा अध्याप� ही बनाएगा, � कि को� नेता और � ही को� पत्रकार।

तुम्हारा
अतुल
मुंब� से�

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Published on June 13, 2024 21:44

December 26, 2023

राशन कार्� मे� डाटा�

आजकल शरी� मल्टी विटामि� और मिनरल्� की कमी से जूझन� के बा� भी उतना कमजो� नही� दिखत�, जितन� दो जीबी डॉटा खत्म हो जाने के बा� दिखत� है�

बड़� से बड़� बब्ब� शे� के मुँह से अग� 2GB डॉटा छी� लिया जा� तो उस� सिया� बन जाने मे� दो मिनट की दे� नही� लगती है�

कल की बा� है� मुम्बई का जा� सद� की तर� धैर्� का इम्तेहान ले रह� था� ज़िंदगी अंधेरी मे� विरा� जैसा फी� कर रही थी� तभी धीरे से आक� एक चौदह सा� के लड़के ने कह�, “भइय� दीजिये �..!

मैने� कह�, “छुट्ट� नही हैं।

उसने खिसियाकर कह�, “भी� नही� मांग रह�, हॉटस्पॉट ऑन कर दीजिये, इनको जीपे करना है।�

मै� चौंक गया। मोबाइल डॉटा हैकर्स पर पढ़� हु� तमाम आर्टिक� या� आन� लगे। मैंन� कह�, “सॉरी भा�, नही� दे सकता।�

लड़का याचन� की मुद्रा मे� � गय�, उसने कह�, “आ� मुझे पहचानत� नही ? मै� ठाकु� सैलून�! जहां आप बा� कटवाते है�, मेरे ही भइया है�, जो आपसे ‘भोजपुरी गानो� मे� ढोढ़ी का आर्थिक योगदान� जैसे बिषय पर चर्च� करते है�, उन्ही� का छोटा भा� हूँ�!

मेरे मुंह से निकल�..”ए मरदे पहिल� � बतावेला।�

मैने� तत्काल प्रभाव से हॉटस्पॉट ऑन कर दिया� फि� तो मेरी नज़� उन भा� साहब पर अट� गई, जिनक� पेमेंट किया जाना था�

एक झटके मे� वो लूटे हु� रई� लग रह� थे� दूसर� झटके मे� बेरोजगार इंजीनियर� आँखे और बा� मिलक� बत� रह� थे कि वो अप्रकाशि� लेखक हैं।

लेकि� पैंट-शर्ट की सिकुड़न मे� एक अंतही� उदासी थी, जो बत� रही थी कि वो किसी कारपोरेट खिड़की से उड़ाए गए कबूत� है�,जिसक� पर का� दिया गय� है�

तब तक अचान� मेरी नज़� उनके जूते पर अट� गई और मेरे तोते उड़ गया।

इससे पहले कि वो ये कहें कि अपनी अगली फिल्� मे� एक रो� मेरा भी रखिएगा राइट� साहब…मैनें जा�-पहचा� का प्रोग्रा� ही कैंसिल कर दिया और हॉटस्पॉट ऑफ करते हु� उस लड़के के का� मे� कह�, � मार्के� मे� एक नय� गाना आय� है…भइय� को बत� देना।�

“कौन सा ?�

“ढोढ़ीये पर ले लs…लोन राजा जी…�

लड़का एक काति� हँसी हंसा� का भइया,”आपो ग़जबे मजाक करते है�..!�

मैंन� कह� गाना बढ़िय� है औऱ तुम्हारे भैया चाहे� तो लो� लेकर बग� मे� एक और सैलू� खो� सकते हैं।�

लड़का मुस्कराय� और चल� गया�

लेकि� दोस्तो�, इससे भी ज्यादा बड़ी दुर्घटना मैंन� अभी-अभी दैनि� जागर� के एकदम कोने मे� पढ़ी है�

ख़ब� कु� ऐसी है कि एक बह� तं� आक� थाने पहुँ� गई है�

उसने थानेदा� से जाकर कह� है कि दरोग� जी,मेरी सा� मंगधोवनी,मुझे जीने नही देगी� एफआईआर लिखि� ।�

दरोग� जी ने पूछा है, “सास तुमस� झगड़ा करती है ?�

“नही� दरोग� जी..�

“मारती है ?�

“न �..�

“त� क्या खाना-पीना नही� देती ?�

“नही, वो बा� भी नही है ?�

“त� क्या दहेज मांग रही है ?�

“नही दरोग� जी..!�

“त� फि� क्या बा� है बताओ�!�

“मैं किचन मे� का� करती रह जाती हूँ…�

� तो क्या ज़बरदस्ती का� करवाती है ?�

“नही�, दरोग� जी, मेरा दो जीबी डॉटा खत्म कर देती है…तंग आई गई हू� इस सा� से� �

दरोग� जी ने अपना हॉटस्पॉट ऑन करके कह� है�.

“ल�,बह�, कम्बख़्� बीबी ने बस 100mb ही छोड़ा हैं…तुम दो चा� रिल्�-विल्� देखो, पानी-वानी पियो.. मै� अभी आत� हू�..�

आग� की खब� अख़बा� वाले जालिमो� ने नही� दी है� शायद पत्रका� का डॉटा खत्म हो चुका होगा�

लेकि� दोस्तो�..मै� आज अपनी � जाने कब होने वाली सा� की कस� खाकर कहता हू�, ये खब� पढ़कर मेरी सांस अट� गई है�

दोनो� हा� प्रार्थन� मे� जु� गए है..”ह� ईश्व� ! अब कल्क� अवता� लो..तु� बह� को ऐसी सा� � दो..पत� को ऐसी पत्नी � दो, किसी भा� को ऐस� भा� � दो� किसी मंटू� को ऐसी पिंकिय� � दो, जो अपना दो जीबी खत्म करने के बा� दूसरों के दो जीबी का कत्ल कर दे।�

ये हमार� सम� का सबसे बड़� अत्याचार है�

अग� सरका� सु� रही हो तो मेरी उससे दरख्वास्� है कि इंडिया बहुत आग� जा चुका है� दो जू� की रोटी के लि� आट� की लड़ाई, अब दो जीबी डॉटा की लड़ाई बन चुका है�

अब राशन कार्� मे� गेंह�,चावल और चीनी मुफ्� करने से का� नही चलेग�.. उसके सा� हर महीने 60GB डॉटा भी मुफ्� करें�.वरना लो� भूखो� मर जाएंगे� 😉

सादर
अतुल..

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Published on December 26, 2023 04:59

October 12, 2023

आई स्टैंड विद�..

दूसरों का झगड़ा-बवाल पूरे मनोयोग से देखन� की लल� मनुष्य मे� कब पैदा हु�, ये आज भी व्यापक शो� का विषय है�

मामल� अग� जूतम-पैजा� तक चल� जा� तो उस� देखन� के लि� हर आदमी अपना का�-धा� खूंटी पर क्यो� टांग देता है, इस पर भी मनोवैज्ञानिक चु� हैं।

आप कहेंगे, “झगड़�- बवाल देखन� मे� बड़� मज� आत� है गुरु…�

सच कहूं तो एक जमान� मे� मुझे भी झगड़ा-बवाल देखन� मे� बड़� मज� आत� था�

बा� यही� को� सातवी�-आठवी� क्लॉ� की होगी�
वही हमेश� की तर� फ़रवरी का रंगी� महीना था�

पुरूवा हव� पूरे मनोयोग से दे� को लग रही थी� शरी� ने� शरी� के अंदर होने वालो� रासायनिक परिवर्तनों से मोहब्ब� कर लिया था�

बॉलीवु� से उड़कर मेरे रेडियो मे� गिरत� मोहब्ब� का हर नगमा जिगर मे� ऐस� घुसत� जैसे सरसो� के खे� मे� अभी-अभी मो� घु� रह� हो�

बस इसी रोमांटिक माहौ� की एक सुबह मै� अपने एक दोस्� के सा� स्कू� जा रह� था� रास्ते मे� देखा, दो-चा� बेरोजगार युवक बड़� ही मनोयोग से सि� नवाक� जमी� मे� कु� रोजगार खो� रहें हैं।

लेकि� जमी� ने रोजगार देने से मन� कर दिया है और अचान� कु� ऐस� हु� है कि चारो� ने उठकर ले ला�, दे ला�, ले चप्प�, दे चप्प� करना शुरू कर दिया है�

मामल� जब ले ला� और दे ला� से भी नही� निपट� है तो बी�-बी� मे� एक दूसर� की मा�-बह� का ते�-ते� स्मर� करने का फैसल� किया गय� है�

देखत� ही देखत� आसमा� मे� जूते और गालियो� के बी� मुकाबल� हो उठ� है�

लेकि� ये क्या ? मामल� तो मेरी सम� के बाहर जा रह� है�.मैंन� दोस्� बबलु� से पूछा है,

“बबलुआ..!�

“क� रे�?�

“ई मा� काहे� होता ?�

“कुछ � भाई…पियरक� शर्टवा वाला बुल्लूका शर्टवा वाला के मा� देले बा…देख मज� आवता..�

“मजा आवता� आय� केने आवता ?�

“देख � मज� आवता..�

“कैस� गुरु, कहाँ मज� आवता..!�

“बबलुआ ने� फि� कह�, “देख � मज� आवता..�

गुरु, डी� बाबा की कसम…बड़ी दे� तक ध्या� से देखा लेकि� मज� कही� से नही� आय�.. आय� तो लाठी और डंडा और उसके सा� दस-बारह लो�.�

देखत� ही देखत� आसमा� मे� लाठियो� ने� तड़तड़ाह� के सा� बरसन� शुरु कर दिया..मजमा उम� पड़ा� बबलु� ने� फि� पूछा.. “बोल ,अब मज� आवता ?�

मैने� कह�, “ह� या�, गुरु,अब � बहुत मज� आवता..�

फि� तो बबलु� ने� आं� बं� करके पर� सु� की अवस्था मे� कह�, “अ� रु� भा�, स्कू� की ऐसी की तैसी..अब � पियरका शर्टवा वाला बन्दूक लेकर आएगा..फि� और आएगा मजा…।�

मैने� कह�, “भाई, लाठी-बन्दूक का झगड़ा देखन� के चक्क� मे� प्रिंसिप� साहब छड़ी से मारेंग� बे..जल्दी चल…�

“उसनें कह�, कु� नही� करेंगे..मै� हू� �..अब तो मा� देखक� ही चल� जाएगा।�

उस दि� डे� घण्ट� पूरे मनयो� से हमने मा� होते हु� देखा� डे� घण्ट� ऐस� आनंद बरसा, जिसे शब्दों मे� व्यक्त करना अभी भी मुश्कि� है�

उस दि� पत� चल� कि उस जमीनी खे� को जु� कहते है� और खेलन� वाले खिलाड़ियो� को जुआड़ी�

मामल� बस इतना है कि आज खिलाड़ियो� ने� हा�-जी� का फैसल� खे� से नही� बल्क� लाठी और डंडे से करने का प्रोग्रा� बन� लिया है�

लेकि� हमार� असली प्रोग्रा� तो स्कू� जाने के बा� शुरू होगा�

हम सब स्कू� पहुँचे� प्रधानाचार्य जी ने� हम दोनो� को गौ� से देखा� हम नही� दिखे तो चश्म� निकाला और फि� देखा�

आखिरका� चश्म� से भी जब हम दोनो� ठी�-ठी� दिखा� नही दि� तो उन्होंने गुला� की छड़ी मंगा� औऱ दस मिनट तक लगातार हम दोनो� को ठी� से तब तक देखा, जब तक कि हमारी आंखो� से धुँधला � दिखन� लगा।

आखिरका� मैने� अपने ला� हो चुके हाथो� से ला� हो चुकी पी� को सहलाते हु� बबलु� से पूछा�, “क� रे मज� आवता ?

बहुत मज� आवता कहने वाले बबलु� ने� आज तक को� जबाब नही� दिया है�

बस एक वो दि� और आज का दिन। मै� झगड़ा होते हु� नही� दे� पाता� यहाँ तक कि को� मुझस� झगड़ा करना भी चाहे तो मै� सर� लेता हू�, “भाई, किसी और दि� कर लेना, ऑनलाइन कर लेना..अभी मत करो।�

लेकि� इध� दे� रह�, ट्विटर बोले तो एक्स खोलत� ही माहौ� एकदम मज� वाला हो चुका है�

� जाने� क्यो� ऐस� महसू� हो रह� है कि कु� लो� ग़ज़� पट्टी पर बमबारी का मज� ले रह� हैं।

दो प्रेमियो� को आई लव यू बोलक� छोड़ देने वाली एक परिचित बेवफ� ने अपने स्टेटस मे� आई स्टैंड वि� इजरायल के सा� लिखा है�

“मार-मा� धुंआ-धुआं कर दे..�
बम मारक� समतल कर दे…�

जि� लियाकत के अब्ब� ने� अभी उसकी अम्मी को तलाक दिया है उसने� भी आई स्टैंड वि� फिलिस्ती� का स्टेटस लगाय� है�

उधार मांगकर का� चलान� वाले मेरे एक दोस्� ने� आई स्टैंड वि� इजरायल के सा� शेयर किया है कि अमरीका ने� इजरायल को गोला-बारू� भे� दिया है

मैने� किसी को जबाब नही� दिया है� सोचत� हू� क्या ही कहूँ� कैसे कहूं कि वो बेवफ� की फु�..तुमन� जि� रोहितव� के दि� का धुआं-धुआं करके उसके अरमानो� का ग़ज़� पट्टी कर दिया है, उसका क्या ?

कैसे उस उधारी दोस्� से कहूं कि अब� अमरीका इजरायल को गोला बारू� सब दे देगा लेकि� तु� का�-धा� छोड़क� कु� दि� यू� ही खड़� रह� तो पनवाड़ी तुमक� पा� भी उधार नही� देगा बे, कु� का�-धा� कर लो�

लियाकत को कैसे समझाऊं की भा� फिलिस्ती� के सा� खड़� होने के लि� समूच� अरबी जग� है..आपको अभी आपने अम्मी के सा� खड़� होने की ज़रुर� है मियां। लेकि� कैसे ?

कहने से बचता हूँ। शायद सोशल मीडिया ने� हम सबको बबलु� मो� मे� डा� दिया है�

बहुतों को इजरायल और फिलिस्ती� के बारे मे� कु� कु� नही� पत�..बस, मज� � रह� है…त� मज� ले रह� हैं।

मै� जानत� हूँ…इ� साढ़े छह इं� की स्क्री� ने� दुनिया को इतना करी� ला दिया है कि हम सा� समन्दर पा� की एक छोटी सी घटना से प्रभावित हु� बिना नही� रह सकते�

ये तो फि� भी मिडि� ईस्ट की घटना है और एक बड़ी वैश्वि� घटना है जो अग� लंबे सम� तक चली तो हम सब इससे प्रभावित हु� बिना नही� रह पाएंगे..

किसी के समर्थन मे� खड़� होना बेहद ज़रूरी है.. लेकि� धर्म और इंट्रेस्� देखक� बस भी� मे� खड़� होना भेड़िया बन जाना है�

इस विकट दौ� मे� जहां जिंदगी रो� हम सबका गज� पट्टी से भी बड़� इम्तेहान ले रही है…दैनिक सँघर्ष इजरायल की तर� बर� रह� है, वहां किसी के सा� इस दिखावे के लि� खड़� होने से पहले खु� के सा� मजबूती के सा� खड़� होना सबसे ज्यादा जरूरी है�

वरना आदमी बन� रहने की सारी संभावन� नष्ट होते दे� � लगेगी�

आख़िर दोनो� तर� के रोते-चीखत� लो� मज� आन� का साधन कैसे हो सकते है� ? खु� से पूछे�, एक विकसित चेतन� परपीड़ा का ये सु� कैसे ले सकती है ?

क्या एक मनुष्य के रू� मे� अभी और विकसित होने की सम्भावनाएं शे� है� ?

सवाल कठिन है..लेकि� हं ये बहुत सर� है कि
आज इजरायल हो या फिलिस्ती� स्वय� के सा� खड़� मनुष्य ही पूरी संवेदनशीलत� से दूसरों के सा� खड़� हो सकता है�

सादर..

अतुल
(अपनी खिड़की पर खड़� होकर�)

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Published on October 12, 2023 04:36

June 20, 2023

आदिपुरूष देखन� के बा� हनुमान जी का इंटरव्यू !

हनुमान जी आदिपुरुष देखक� अभी सिनेमा हा� से निकल� ही थे कि एक पत्रका� ने� उन्हें पहचा� लिया, “प्रभु, एक इंटरव्यू दे देते तो मेरा चैनल मोनेटाइज हो जाता..!�

हनुमान जी ने� पत्रका� को गौ� से देखा� आंखे बं� कर गहरी सांस ली..मन मे� जय श्रीरा� का जा� किया और पूछा ,

“इसक� पहले क्या करते थे ?�

“भगव�, एक राष्ट्री� चैनल मे� पत्रका� था, दो महीने पहले निका� दिया गया…अ� यू ट्यूबर हूँ।�

“क्य� ना� है, रवी� कुमा� ?�

“नही�..�

“अजी� अंजु� ?�

“नही�-नहॶ�..!�

“पुण्य प्रसून बाजपेयी, अभिसार शर्म� ?�

नही�,पव� सु�, मै� इनमे� से को� नही� हू�..�

� तब तु� कौ� हो ? शक� से तो विनो� कापड़ी भी नही� लगते.. ?�

“मैं मनोज हू� प्रभ�..एक सत्त� विरोधी पत्रका�.. ! �

सत्त� विरोधी सुनत� ही हनुमान जी के माथे पर बल पड़ गय�..जो� से पूछा,”कौन सी सत्त� के विरोधी हो..? �

ऐस� सवाल सुनक� पत्रका� खामो� हो गया। हनुमान जी ने� कह�,

“बोलते क्यो� नही� ? कौ� सी सत्त� के विरोधी हो ?�

“ब�, सत्त� का विरोधी हू� प्रभ�..।�

“वही तो पू� रह�, मोदी की सत्त� या केजरीवा�-ममता बनर्जी की सत्त� ? नीती�, एम के स्टालि� की सत्त� ? या सिद्धारमैय�,चंद्रशेख� रा� और पिनराई विजय� की सत्त�..?�
कि� सत्त� के विरोधी हो..?�

हनुमान जी के इस कठिन सवाल पर पत्रका� बगले झांकने� लग�..उसने गिड़गिड़ात� हु� पै� पक� लिया,

“प्रभु ऐस� सवाल करके मुझे धर्मसंकट मे� मत डालिये� हफ़्त� मे� एक दि� ट्विटर पर सबको गाली देकर निरपेक्ष रहने की पूरी कोशि� करता हूँ। फि� भी अर्निं� नही� हो रही� ये चैनल � चल� तो मर जाऊंगा, प्ली� एक इंटरव्यू दे दीजिए�!�

“तुम्हार� भी ना� मनोज है ?� हनुमान जी ने� पूछा�

� जी प्रभु� मनोज मुंतसि� की कस�..मै� कल से ही काली� बिछाकर सिनेमा हॉ� के सामन� आपका इंतज़ार कर रह� हू�..बस एक इंटरव्यू..!�

हनुमान जी मनोज को इंटरव्यू देते इसके पहले ही उनके व्हाट्सए� पर अंगद का मैसे� � गया।

“ह� आंजनेय..सादर चर� स्पर्श..�

“कैस� हो अंगद..क्या समाचार ? �

अंगद ने� इयरफोन निकालक� कह�,� प्रभ�, एकदम चौचक चल रिया है� अभी बु� के बगीचे मे� बैठक� आम खा रह� था तो आपकी या� � गई।�

हनुमान जी चौंक�, “य� कैसी भाषा बो� रह� हो अंगद, क्या तुमनें भी आदिपुरूष दे� लिया ?�

� दे� लिया�? हे पवनसुत, मुझे तो ट्विटर पर पॉजिटि� ट्वि� लिखन� के नौ हजार रुपय� भी मि� रह� थे लेकि� लंका से रावण अंकल ने� वीडियो कॉ� करके सारा स्की� खराब कर दिया…�

“क्य� हु�, रावण ने� भी आदिपुरूष दे� लिया ?�

“ह�,फर्स्ट डे, फर्स्ट शो..�

“कैसी लगी उसको ? �

“प्रभु फ़िल्� देखन� के बा� रावण कत्त� लोहा� हो चुका है� दि�-रा� लोहा पी� रह� है� कह रह�,अपने पापा बाली को भेजो, साझे मे� लोहे का बिजनेस करते है� ।�

“अच्छा, ऐस� हो गय� ?�

“ह�,प्रभु…उधर विभीषण बो चाची ने� तो मुम्बई से फैशन डिजायन� रितु कुमा� को बुला लिया है।�

“अरे, उन्हें क्या हु� ? �

“क� रही है�, मा� लहंग� शु� बी चेंज्ड नॉ�..�

� उफ्फ�! घो� अनर्थ…�

“यही नही�,अभी और सुनिये..

“अ� क्या हु� ?�

� हु� ये है कि कुंभकर्ण और अक्ष� कुमा� ने� मुम्बई से वीएफक्� वालो� को बुलाकर अशोक वाटिका के सारे राक्षसों का मेकअ� करवा दिया है� ऊप� से आज सुबह रावण ने� पुष्पक विमा� भेजक� अलाउदी� खिलजी को मह� मे� आमंत्रित कर दिया..।�

“अलाउद्दिन खिलजी को� किसलिए ?�

“अपनी दाढ़ी बनान� के लि� ?�

� जय श्रीरा�,जय श्रीरा�, बस यही दि� देखन� बाकी रह गय� था अंगद ……�

“ह�,प्रभ�,लेकि� अगला समाचार सबसे बुरा है�

“अ� क्या हु� ? �

“अपनी वानर सेना के सारे वानर आदिपुरूष मे� अपना रू� देखक� सदमे मे� है�..सबने विरा� से लोकल पकड़क� अंधेरी की तर� कू� कर दिया है� सबके हा� मे� गद� है� अब ओम राउत और मनोज मुंतशि� की खै� नही�, उन्हें आप ही बच� सकते� है� प्रभ�, प्ली� कु� करिये…।�

इतना सुनत� ही हनुमान जी चिंतित हो उठे।

� ठी� है अंगद,तु� चिंत� � कर�, मै� कु� करता हूँ।�

इध� मनोज पत्रका� हनुमानजी को चैटिंग करता दे� धीरज खो उठा।

“प्रभु, अब हो गई � चैटिंग, मेरे कु� सवालों का जबाब दे दीजि�,आज सुबह से एक भी इन्टरव्य� नही� किया�? �

इतना चिरौरी के बा� भी हनुमान जी ने� पत्रका� की एक � सुनी� तुरन्त एक ऑट� वाले को हा� दिया और मलाड से अंधेरी की तर� चल पड़े� मनोज पत्रका� भी उचकक� ऑट� मे� बै� गया�

“तुम नही� मानोगे ?� हनुमान जी ने फि� डांट�..

“प्रभु बस एक इंटरव्यू, बस एक..�

अगले ही पल मुम्बई के जा� ने� हनुमान जी का हा�-बेहा� कर दिया� बढ़ते तापमान और गर्मी देखक� हनुमान जी से भी रह� � गय�, उन्होंने कह�, “ठी� है, पू� लो�.�

� प्रभ�, मनोज मुंतशि� ने� कल टीवी पर कह� है कि हनुमान जी भक्त है�, मैंन� उन्हें भगवा� बनाय� है, आप क्या कहना चाहेंग� ? क्या आप क्रोधि� है� ?

“नही�,बिल्कु� नही�..मुझे तो बस उन पर दय� � रही है� मै� उनकी सद्बुद्ध� की कामन� करूँगा� शायद मनोज भू� गए है� कि जनता ने� ही उन्हें लेखक बनाय� है।�

“प्रभु क्या भगवा� रा� पर इस फ़िल्� का को� अस� पड़ेग�, या आप पर ?�

� कैसी बा� करते हो, जि� रा� के पा� आक� शी� अपना श्रृंगार करता है� विनय विभूषि� होता है� संस्का�, विवे� और ज्ञा� शर� लेते हों। जो मेरे जैसे करोड़� भक्तों के हृदय मे� बसते हो�, उन पर एक फ़िल्� का अस� पड़ेग� ?�

“फिर आप मनोज मुंतशि� से क्या कहना चाहेंग� ?�

� मै� यही कहूंगा कि मनोज जितन� जल्दी हो सक� अपने असिस्टें� राइट� की तनख़्वा� बढ़� दें�!�

“य� मी� ये सब असिस्टें� राइट� ने� लिखा है ?�

“तुम ही बताओ…ए� आदमी स्वय� रियलिटी शो, डाक्यूमेंट्री होस्� करेग�, जज भी बनेग�, फि� दि� भर हिन्दू राष्ट्� और सनात� की रक्ष� करेग� तो कैसे लि� पाएग�.. ? प्रभावी लेखन एकां� की साधन� है वत्स�..असिस्टें� तो रखना पड़ेग� � ?

“वैस�,आजकल लेखकों की बा� सी � गई है..उनके के लि� को� सलाह�.�!

� सलाह तो यही है कि लेखक की जबान उसकी कल� है� जि� दि� कल� से ज्यादा जबान चलने लगेगी, उस दि� उसका यही हश्र होगा।�

“ओ� राउत को क्या कहेंगे प्रभु�?�

� मै� यही कहूँगा, पर्द� पर रा� को उतारने से पहले,कु� महीने हृदय मे� रा� को उतारते, तो ये हश्र � होता।�

“औ� बॉलीवु� के लेखकों-निर्देशक�,कलाकारों को को� मैसे� ?

� उनसे तो यही कहूंगा कि इस दौ� मे� लोकप्रिय होना आसान है� लोकप्रियता बनाए रखना कठिन है� सफ� होना आसान है,सफलत� को बचाए रखना कठिन है� आज का सारा युद्� इसी सफलत� और इसी लोकप्रियता को बचाए रखने का युद्� है

“य� लोकप्रियता और सफलत� कैसे बचती है प्रभ�..? �

“अहंका� रहित विनयशीलत� के सत� अभ्यास और अपने कार्� पर एकाग्र होकर ध्यानस्थ होने से..! �

जय हे बजरंगबली..मै� धन्य हो गया।

तब तक मनोज पत्रका� की आंखे� खु� गई�..सपने से जागा, तो बिजली जा चुकी थी�

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Published on June 20, 2023 02:50