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रा� दरबारी Quotes

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राग दरबारी रा� दरबारी by श्रीला� शुक्�
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रा� दरबारी Quotes Showing 1-30 of 35
“लेक्चर का मज़ा तो तब है जब सुननेवाल� भी समझे� कि यह बकवा� कर रह� है और बोलनेवाल� भी समझे कि मै� बकवा� कर रह� हूँ।”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“जो खु� कम खाता है, दूसरों को ज़्याद� खिलाता है; खु� कम बोलत� है, दूसरों को ज़्याद� बोलन� देता है; वही खु� कम बेवकूफ� बनता है, दूसर� को ज़्याद� बेवकूफ� बनात� है�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“इतना का� है कि सारा का� ठप्प पड़ा है�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“सच्चाई छु� नही� सकती बनाव� के उसूलों से, कि खुशब� � नही� सकती कभी कागज के फूलो� से�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“पिछली पीढ़ी के मन मे� अगली पीढ़ी को मूर्� और अगली के मन मे� पिछली को जोकर समझन� का चल� वहाँ इतना बढ़ गय� था कि अग� क्षेत्� साहित्� या कल� का � होता, तो अब तक ग्रह युद्� हो चुका होता�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“अपने दे� का कानू� बहुत पक्क� है, जैसा आदमी वैसी अदालत।’� �”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“इस दे� मे� जाति–प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी–सी तरकी� है� जाति से उसका ना� छीनक� उस� किसी आदमी का ना� बन� देने से जाति के पा� और कु� नही� रह जाता� वह अपने–आ� ख़त्� हो जाती है� �”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“It was an unnecessarily pretty sunset.”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“आज रेलव� ने उस� धोखा दिया था. स्थानी� पैसेंज� ट्रे� को रो� की तर� 2 घंटा ले� समझक� वह घर से चल� था, पर वह डे� घंटे ले� होकर चल दी थी.”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“उर्द� कवियों की सबसे बड़ी विशेषत� उनका मातृभूमि प्रे� है� इसीलि� मुंब� और कोलकात� मे� भी वे अपने गांव या कस्ब� का ना� अपने ना� के पीछे बांध� रहते है� और उस� खटखट� नही� समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कह कर वे कोलकात� मुंब� के कू� मंडू� लोगो� को इशार� से समझाते है� कि सारी दुनिया तुम्हारे शह� तक ही सीमि� नही� है� जहां मुंब� है वहां गोंड� भी है�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“हम असली भारती� विद्यार्थी है�; हम नही� जानत� कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है, पक्क� फ़र्श किसक� कहते है�; सैनिटरी फिटिंग कि� चिड़िय� का ना� है� हमने विलायती ताली� तक देसी परम्पर� मे� पायी है और इसीलि� हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृ� है� ! हमार� इतना पढ� लेने पर भी हमार� पेशा� पेड़ के तन� पर ही उतरत� है, बन्द कमरे मे� ऊप� चढ� जाता है�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“खन्न� मास्टर का असली ना� खन्न� था� वैसे ही, जैसे तिलक, पटेल, गाँधी, नेहर� आद� हमार� यहाँ जाति के नही�, बल्क� व्यक्त� के ना� हैं। इस दे� मे� जाति–प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी–सी तरकी� है� जाति से उसका ना� छीनक� उस� किसी आदमी का ना� बन� देने से जाति के पा� और कु� नही� रह जाता� वह अपने–आ� ख़त्� हो जाती है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“वे बताती थी� कि हमें एक अच्छ� रेजर-ब्ले� बनान� का नुस्खा भल� ही � मालू� हो, पर कूड़� को स्वादिष्� खाद्� पदार्थों मे� बद� देने की तरकी� सारी दुनिया मे� अकेल� हमी� को आती है�”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“अग� हम खु� रहें तो गरीबी हमें दुखी नही� कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजन� यही है कि हम बराब� खु� रहें� �”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“கன்ன� மாஸ்டரின� இயற்பெயர� கன்ன� தான். திலகர், காந்தி, பட்டேல�, நேரு போன்� இனத்தைக் குறிக்கும் பெயர்களெல்லாம், தன� மனிதர்களின� பெயர்களாகிவிடவில்லைய�? அப்படித்தான் இதுவும�. இந்த நாட்டில் இருந்த� சாதியை ஒழிக்க இத� ஒர� நல்ல, சரியான உபாயந்தான். சாதியிடமிருந்த� அதன் பெயரைப� பிடுங்கி, தனியொர� மனிதனுக்கு அளித்த� விடுவதால� சாதியிடம� ஒன்றும� இல்லாமல் போய்விடும். பிறக� என்ன? அத� தானாகவ� அழிந்துவிடும�.”
Shrilal Shukla, रा� दरबारी
“उनकी असली उम� बासठ सा� थी, काग़ज़ पर उनसठ सा� थी और देखन� मे� लगभग पचास सा� थी�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“इस दे� मे� जैसे भुखमरी से किसी की मौ� नही� होती, वैसे ही छू� की बीमारियो� से भी को� नही� मरता�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“मर्दों की हालत का तो कहना ही क्या; हिन्दुस्तानी छैला, आध� उजला आध� मैला�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“तब तक चारो� ओर से ‘चोर ! चो� ! चो� !� के नारे उठने लग� थे� शो� हाथों–हाथ इतना बढ� गय� कि अंग्रेज़ों ने अग� उस� 1921 मे� सु� लिया होता तो हिन्दुस्ता� छोड़कर वे तभी अपने दे� भा� गए होते�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“यानी इन्सानिय� का प्रयोग शिवपालगं� मे� उसी तर� चुस्ती और चालाकी का लक्ष� माना जाता था जि� तर� राजनीति मे� नैतिकत� का�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“हमार� इतिहास में–चाह� युद्धकाल रह� हो, या शान्तिकाल� राजमहलों से लेकर खलिहानों तक गुटबन्दी द्वारा ‘मैं� को ‘तू� और ‘तू� को ‘मैं� बनान� की शानदार परम्पर� रही है� अंग्रेज़ी रा� मे� अंग्रेज़ों को बाहर भगान� के झंझट मे� कु� दिनो� के लि� हम उस� भू� गए थे� आज़ादी मिलन� के बा� अपनी और परम्पराओ� के सा� इसको भी हमने बढ़ावा दिया है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“जैसे भारतीयो� की बुद्धि अंग्रेज़ी की खिड़की से झाँककर संसा� का हालचाल देती है, वैसे ही सनीचर की बुद्धि रंगनाथ की खिड़की से झाँकती हु� दिल्ली के हालचाल लेने लगी�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“वैद्यजी के प्रभाव से वह किसी भी राह–चलत� आदमी पर कुत्ते की तर� भौंक सकता था, पर वैद्यजी के घर का को� कुत्ता भी हो, तो उसके सामन� वह अपनी दु� हिलाने लगता था� यह दूसरी बा� है कि वैद्यजी के घर पर कुत्ता नही� था और सनीचर के दु� नही� थी�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“कोअॉपरेटिव यूनियन का ग़बन बड़े ही सीधे–साद� ढं� से हु� था� सैकड़ो� की संख्या मे� रोज़ होते रहनेवाले ग़बनों की अपेक्ष� इसका यही सौन्दर्य था कि यह शुद्� ग़बन था, इसमे� ज़्याद� घुमाव–फिराव � था� � इसमे� जाली दस्तखतों की ज़रूरत पड़ी थी, � फ़र्ज़ी हिसा� बनाय� गय� था, � नकली बि� पर रुपय� निकाला गय� था� ऐस� ग़बन करने और ऐस� ग़बन को समझन� के लि� किसी टेक्नीकल योग्यत� की नही�, केवल इच्छा� शक्त� की ज़रूरत थी�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“यह हमारी गौरवपूर्� परम्पर� है कि अस� बा� दो–चार घण्ट� की बातची� के बा� अन्त मे� ही निकलती है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“हमारी यूनियन मे� ग़बन नही� हु� था, इस कारण लो� हमें सन्देह की दृष्टि से देखत� थे� अब तो हम कह सकते है� कि हम सच्च� आदमी हैं। ग़बन हु� है और हमने छिपाया नही� है� जैसा है, वैसा हमने बत� दिया है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“पुनर्जन्� के सिद्धान्� की ईजाद दीवानी की अदालतो� मे� हु� है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसो� को लेकर � मरें कि उनका मुकदमा अधूर� ही पड़ा रहा। इसके सहार� वे सोचत� हु� चै� से मर सकते है� कि मुक़दम� का फैसल� सुनन� के लि� अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“हर बड़े राजनीतिज्� की तर� वे राजनीति से नफ़र� करते थे और राजनीतिज्ञो� का मज़ा� उड़ाते थे�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“झिलमिलात� हवाई अड्डों और लकलकात� होटलों की मार्फत जैसा ‘सिम्बालिक माडर्नाइज़ेशन� इस दे� मे� हो रह� है, उसका अस� इस मकान की वास्तुकल� मे� भी उत� आय� था और उससे साबि� होता था कि दिल्ली से लेकर शिवपालगं� तक का� करनेवाली देसी बुद्धि सब जग� एक–सी है�”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी
“दे� मे� इंजीनियरों और डॉक्टरों की कमी है� कारण यह है कि इस दे� के निवासी परम्पर� से कव� हेैं� चीज़ को समझन� के पहले वे उस पर मुग्� होकर कवित� कहते हैं। भाखड़ा–नंग� बाँध को देखक� वे कह सकते है�, ‘‘अहा ! अपना चमत्का� दिखाने के लि�, देखो, प्रभ� ने फि� से भारत–भूम� को ही चुना।’� अॉपरेशन–टेब� पर पड़ी हु� युवती को देखक� वे मतिराम–बिहारी की कविताए� दुहरान� लग सकते हैं।”
श्रीला� शुक्�, रा� दरबारी

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